ग्राफिक एरा अस्पताल की इमरजेंसी अत्याधुनिक सुविधाओं से जुड़ी, मानवीय संवेदनाएं व दुख दर्द कम करने का जज्बा: डा. घनशाला

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के सेलाकुई और झाझरा के बीच बंसीवाला में स्थित ग्राफिक एरा अस्पताल (ग्राफिक एरा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साईंसेज) में गाइनाकोलॉजी, जनरल फिजिशियन, पल्मोनोलॉजिस्ट, आर्थोपेडिक समेत लगभग सभी विभागों को इमरजेंसी से जोड़ दिया गया है। इमरजेंसी में रेडियोलॉजी, सी.टी. स्कैन, एक्स-रे और अल्ट्रा साउंड की अत्याधुनिक तकनीकों पर आधारित मशीनें लगाई गई हैं। सी.टी. स्कैन के लिए सबसे आधुनिक एंजियो सी.टी. की सुविधा भी इमरजेंसी में उपलब्ध है, जो हृदय को स्टन्ट डालने में महत्वपूर्ण है।
अस्पताल में 1000 एम.ए. की डिजिटल एक्स-रे मशीन और रोगियों के बैड पर जाकर एक्स-रे करने के लिए डिजिटल एक्स-रे मशीन उपलब्ध है। इसके साथ ही आपात सेवा के ट्रायज एरिया में सी.आर्म कम्पैटेबिल हाइड्रोलिक बैड्स मरीजों की सुविधा के लिए उपलब्ध कराये गये हैं। बच्चों, शिशुओं, गर्भवती महिलाओं, हड्डी, सीने, फेफड़े आदि के रोगियों की बेहतर चिकित्सा के लिए अनुभवी और नामी चिकित्सकों की व्यवस्था की गई है। तुरंत सभी तरह के टेस्ट करने के लिए स्थापित लैब्स भी लगातार कार्य कर रही हैं। अस्पताल के ऑपरेशन थियेटर अत्याधुनिक डिजिटल आपरेशन टेबिल और उपकरणों से सुसज्जित है।
ग्रााफिक एरा एजुकेशनल ग्रुप के अध्यक्ष डा. कमल घनशाला ने बताया कि वेंटिलेटर, बाई पेप मशीन आदि की नवीनतम टेक्नोलाॅजी पर आधारित सुविधाओं के साथ प्रख्यात विशेषज्ञों की सेवाओं को राज्य की जरूरतों के अनुरूप तैयार किया गया है। इसी क्रम में उत्तराखण्ड में सबसे पहले ग्राफिक एरा अस्पताल में कोरोना वैक्सीन स्पूतनिक-वी उपलब्ध कराई गई थी। उस समय यह वैक्सीन उत्तराखण्ड के साथ ही आस-पास के क्षेत्रों में भी उपलब्ध नहीं थी।
डा. घनशाला ने कहा कि ग्राफिक एरा अस्पताल, ग्राफिक एरा द्वारा स्थापित उच्च आदर्शों और मानवीय मूल्यों को चिकित्सा क्षेत्र से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। इसमें मानवीय सम्वेदनाएं, दुख दर्द कम करने का ज़ज्बा और सेवा की भावनाएं हमारी विशेषता के रूप में विद्यमान है। इसी के मद्देनजर शुल्क ज्यादा रखने के बजाए बेहतरीन विशेषज्ञ जोड़ने और शानदार संवेदनशील सेवाएं उपलब्ध कराने की व्यवस्थाएं की गई हैं।
वैज्ञानिक तैयार कर चुके हैं ग्रीन टी से फंगलरोधी दवा
कई नई खोजों के कारण विख्यात ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी ने हाल ही में बड़ी खोज की थी। ग्राफिक एरा के वैज्ञानिकों ने ग्रीन टी से फंगल रोधी दवा तैयार करने में कामयाबी हासिल की है। केंद्र सरकार ने इस नई खोज का पेटेंट ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के नाम दर्ज कर लिया है। देहरादून में ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी के बायोटेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट के वैज्ञानिकों ने यह नया फार्मूला खोजा है। यह नई खोज करने वाली वैज्ञानिकों की टीम में डॉ जिगिशा आनंद, डॉ निशांत राय और डॉ आशीष थपलियाल शामिल हैं। डॉ. जिगिशा आनंद ने बताया कि इस फार्मूले के जरिये मानव शरीर में मौजूद रहने वाले अति सूक्ष्म जीव- कैंडिडा के कारण होने वाले रोगों का इलाज संभव है। कैंडिडा की वजह से शरीर के विभिन्न हिस्सों में फंगल इंफेक्शन हो जाता है। इसके उपचार के लिए एंटी फंगल दवाएं उपयोग में लाई जाती हैं।
एंटी फंगल दवाओं की डोज अधिक होने के कारण शरीर में प्रतिरोध क्षमता में कमी, सांस लेने में परेशानी, उल्टी, दर्द, हाइपर टेंशन जैसी समस्याएं सामने आने की संभावना बढ़ जाती है। ग्रीन टी में मौजूद कैटकीन्स के साथ बहुत कम मात्रा एंटी फंगल दवा और धातु आयनों की सूक्ष्म मात्रा को मिलाकर यह नया फार्मूला तैयार किया गया है।
डॉ. निशांत राय ने बताया कि इस फार्मूले से एंटी फंगल दवाओं के मुकाबले बहुत तेजी और प्रभावी ढंग से कैंडिडा की वजह से होने वाले रोगों से निपटा जा सकता है। उन्होंने बताया कि कैंडिडा का संक्रमण सामान्य: नवजात शिशुओं, बुजुर्गों, महिलाओं, एंटीबायोटिक दवाओं की ज्यादा मात्रा लेने वालों, अंग प्रत्यारोपण कराने वालों को होता है। आमतौर से इस्तेमाल की जाने वाली एंटीबायोटिक दवाओं के विरूद्ध कैंडिडा में प्रतिरोध क्षमता विकसित हो जाती है, इस वजह से पारंपरिक उपचार अप्रभावी होने लगता है।
नया फार्मूला कैंडिडा विरोधी कई अवयवों को मिलाकर बनाया गया है, इसलिए यह अधिक प्रभावी होने के साथ ही सुरक्षित भी है। इस फार्मूले में ग्रीन टी का उपयोग होने के कारण उसमें मौजूद पॉलीफेनोल्स कैटकीन्स स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं और इनमें कैंसर विरोधी गुण विद्यमान हैं।
वैज्ञानिकों को दी बधाई
ग्राफिक एरा ग्रुप के अध्यक्ष डॉ कमल घनशाला ने इस बड़ी खोज पर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए इसे दुनिया के लिए बहुत उपयोगी बताया। उन्होंने कहा कि ग्राफिक एरा में टाइडफाइड को डायग्नोस करने की नई तकनीक की खोज और उसके बाद गन्ने के रस से मैम्ब्रेन बनाने जैसे अनेक आविष्कारों के बाद यह एक और ऐसी उपलब्धि है जिसका पेटेंट यूनिवर्सिटी को मिला है। कुलपति डॉ एच एन नागराजा ने बताया कि तमाम प्रयोगों और एक लम्बी प्रक्रिया के बाद यह कामयाबी मिली है। वर्ष 2014 में इस खोज का पेटेंट कराने के लिए आवेदन किया गया था। बीस वर्षों के लिए विश्वविद्यालय को यह पेटेंट दिया गया है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।