नए साल के स्वागत में डॉ. पुष्पा खंडूरी की कविता-सन बदली हमको ये सुन्दर सबक सिखलाता है
सनबदली भी जोड़ता बारह महीनों का सालों से नाता है।
अपनी झोली के सारे फूल सम्हाले हुए नए साल पे लुटाता है ॥
रूठों को मनाना बिछुड़ों को मिलाना इसको आता है।
दिखने को अलग – अलग इनके बजूद हैं।
पर एक दूसरे के भीतर ये मौजूद हैं॥
ये दोनों समय रूपी नदी के दो तीर हैं
एक के हाथ में थमी दुसरे की तकदीर हैं ॥
एक के हाथ अनुभव की शमशीर है
अगले के हाथ ख्वाबों की जागीर है
एक ही रात में कितना कुछ बदल जाता है ।
रात पुरानी और भोर नया साल कहलाता है॥
इस रात का भी भोर से प्यारा सा नाता है।
एक के किए सारे वादे अगला निभाता है ॥
ठीक बारह बजे रात एक विगत वर्ष, दूसरा आगत कहलाता है ।
एक की विदाई दूसरे का स्वागत बन जाता है ॥
एक के यादों की पूंजी संजोकर
अगला उसके किए वादों को निभाता है।
जनवरी से दिसम्बर की लम्बी दूरी भुलाकर।
दिसम्बर हमेशा से जनवरी को
गले से लगाता है॥
तुम सब भी शिकवे गिले भुलाकर
बिछड़ों को गले लगाओ।
सनबदली हमको ये सुन्दर सबक सिखलाता है . . . .
कवयित्री की परिचय
डॉ. पुष्पा खंडूरी
एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी
डीएवी (पीजी ) कॉलेज
देहरादून, उत्तराखंड
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।