युवा कवयित्री अंजली चंद की कविता- खुद की खामोशी में छिपे शोर से

खुद की खामोशी में छिपे शोर से
एक रोज रिहा हो जाएंगे जब
तब बताएंगे
पहचाना तो सही
थोड़ा जान भी लेते,
गैरों से सुनकर मुकव्वल कर लिए अल्फ़ाज़ अपने
एक बारी किरदार हमारा हमसे भी सुन लेते,
कटघरे में तो खड़े कर हमको खुद से आजादी दे दी
सजा हमारी कब पूरी होगी इकतला तो कर लेते,
आज भी उन सवालों से रिहाई नहीं दे पाए हैं खुद को
जो हिस्से आनी ही न थी,
एक जिंदगी जीने को सौ बार मरने का गजब का अदाकारा
निभा रहे हैं
गए हो दफा कर हमें तो उन अफवाहों को तो दफ्न कर लेते
खुद की खामोशी में छिपे शोर से
एक रोज रिहा हो जाएंगे जब
तब बताएंगे (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
हिस्से मेरे नाम तुम्हारा आया है,
उन हिस्सों के कुछ किस्सों में तुम्हे मुझसे कही बेहतर बताया है,
हम तो ठहरे के ठहरे रह गए तुम गए तो बचा जो था कुछ तो लौटा लेते,
बेहतरीन थे जब साथ हम थे
ये हम तुम का अलगाव तो पूर्ण कर लेते,
खुद की खामोशी में छिपे शोर से
एक रोज रिहा हो जाएंगे जब
तब बताएंगे (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
एक आरजू हमारी पूरी करने
तुम आना ख्यालों में बिन इजाजत लिए,
हकीकत में परछाई भी मंजूर नहीं।
तुम वो अधूरापन संजो लेना स्वप्न में आकर,
हकीकत में स्वप्न का कोई किरदार मंजूर नहीं।
न पूछना हाल हमारा, फिर खुदा हमारा तुम्हे बख्शेगा नहीं,
न लाना यादों में भूल से भी, वादों को तोड़ने वाले यादों को याद रखते नहीं ,
न दोहराना फरेब सा लिए दोहरा अस्तित्व अपना,
न दे पाए हम बद्दुआ कोई मगर शायद हम सा तुम्हें मिलेगा नहीं,
तुम्हें ग्लानि का भाव दे ये मेरी अभी कोई ऐसी मंशा नहीं,
खुद की खामोशी में छिपे शोर से
एक रोज रिहा हो जाएंगे जब
तब बताएंगे (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
एक रोज बेहद सताएंगे तुम्हें
कहने को तब भी
ये आसमां, ये सितारा, ये नज़ारा ,
प्रकृति के सारे साक्ष्य होंगे
तुम होगे मगर होंगे हम नहीं,
यादें होंगी मगर हकीकत नहीं
हम अपनी तड़प सह गए
तुम अपनी तड़प से सहम जाओगे
कहने को तो जहां में जहां के
नजारे सारे होंगे शामिल हम न होंगे।।
कवयित्री का परिचय
नाम – अंजली चंद
खटीमा, उधमसिंह नगर, उत्तराखंड। पढ़ाई पूरी करने के बाद सरकारी नौकरी की तैयारी कर रही हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।