युवा कवयित्री अंजली चंद की कविता- जब एक भावपूर्ण इंसान का भाव शून्य हो जाता है

अपारदर्शी घटना से जब
एक भावपूर्ण इंसान का भाव शून्य हो जाता है
जब गुजरता है इंसान इस राह से
जब वो नहीं साझा कर पाता अप्रत्यक्षता को,
मन का विरोधी जब अपना हो
भाव को जब छला गया हो,
कभी कभी एक वार बिखर देता है
कर देता है स्वयं के भाव को शून्य
आजीवन के लिए अपना लेता है स्वयं को अपूर्ण
काल्पनिक विचारों का समावेश नगण्य कर
वास्तविकता का आवरण अपना लेता है,
मनभावक को लगा वो अनचाहा सा घाव
जो दाग बनकर आजीवन बस ख़रोचता है, (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
नहीं ला पाता अपनी स्थिति को वर्तमान में,
दबा लेता है हुनर को अपने कमरे के किसी कोने में
छुपा लेता है खुद को खुद के ही भीतर
घटना होती है वो प्रत्यक्ष आडंबर करते दिखे,
रूह को लगी चोट की प्रत्यक्ष साक्ष्य ही नहीं,
न ठहर पाता है न ही दौड़ पाता है,
ख़ुद को भटकता हुआ ही पाता है,
नहीं अपनाता फिर वो अपनत्व की साझेदारी
जब भावपूर्ण इंसान का भाव शून्य हो जाता है।।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।