शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता-परिंदों का आशियाना

परिंदों का आशियाना
मेरे मृदुल वन में जब,
परिंदों की गुंजन होती है।
हृदय खुश हो जाता तब,
उनकी जब धीमी आहट होती है।।
कोमल हाथ गात लिए परिंदे,
मृदुल वन में भ्रमण करते हैं।
उड़ना चाहें स्वच्छंद डाली डाली,
लगता खुशियांआज ही पा ली हैं।।
फुदकते कूदते छलांगे लगाते,
डाली डाली पात पात जाते हैं।
हाथ लगाना चाहूं जो मैं उनको,
मदमस्त होकर वे उड़ जाते हैं।।
रहने दो उनको मेरे वन में,
यही तो उनका ठौर ठिकाना है।
तिनके जोड़कर बनाया है घोंसला,
क्यों जिद तुम्हे उन्हे मिटाना है।।
मत कैद करो पिंजरों में उनको,
स्वछंद उनको उड़ने देना है।
दिखता नहीं उनका दर्द तुम्हे,
मृदुल वन ही उनका आशियाना है
दिखता दर्द परिंदों का मुझे,
हृदय से इक आह निकलती है।
काश यहीआह सभी के हृदय से निकले,
तो दरिंदे भी इंसान बन सकते हैं।।
क्यों कतरना चाहते पंख उनके तुम,
पंख उनके जीवन का आधार हैं।
उड़ने दो धरा गगन में उनको,
गुलामी से उनको नहीं अब प्यार है।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
परिंदे परेशान सुंदर रचना