ललित मोहन गहतोड़ी के दो लोकगीत- मुसाफिर चोर से बचना और जहां मिल रिया
मुसाफिर चोर से बचना…
तेरी गठरी को ले भागेगा चोर
मुसाफिर चोर से बचना…
यह सफर ही होता बड़ा जोर
मुसाफिर चोर से बचना…
बैठा होगा पास तुम्हारे
मीठी मीठी बातें…
नजर में होगी गठरी सोचो
चंद छोटि मुलाकातें…
तुम समझोगे नेक है बंदा
आंख मूंदकर बातें…
भाग जाएगा गठरी उठाकर
रह जाएंगी यादें…
रोना आएगा जोर मुसाफिर
चोर से बचना…. यह सफर ही…
शातिर होते चोर उचक्के
चोरी उनका पेशा…
भोली सूरत लुच्चे लफंगे
जैसे हों अभिनेता…
समझोगे तो समझ ही लेना
मैं बात पते की करता…
पछतावा क्यों बंद आंख जी
हुआ चोर लापता…
होते हैं सीनाजोर मुसाफिर
चोर से बचना… यह सफर ही….
जहां मिल रिया…
लल्ला लल्ला लोरिया “तू”
खड़े खड़े क्यों रो रिया…
जहां मिल रिया बोरिया
क्यों वहीं पर तू सो रिया…
आ रिया ना जा रिया क्यों
खड़े खड़े लड़खड़ा रिया…
कुछ भी तू ना बोल रिया
क्यों आगे पीछे डोल रिया…
जहां मिल रिया बोरिया…
लल्ला लल्ला लोरिया…
पहले पी के अरिया या
फिर से पीने जा रिया…
जा रिया ना आ रिया क्यों
भद अपनी पिटवा रिया…
जहां मिल रिया बोरिया…
लल्ला लल्ला लोरिया…
कवि का परिचय
ललित मोहन गहतोड़ी
शिक्षा :
हाईस्कूल, 1993
इंटरमीडिएट, 1996
स्नातक, 1999
डिप्लोमा इन स्टेनोग्राफी, 2000
निवासी-जगदंबा कालोनी, चांदमारी लोहाघाट
जिला चंपावत, उत्तराखंड।





