शिक्षक दलीप सिंह बिष्ट की कविता-मुसीबत में आज गांव याद आ गये
गांव
जब मजे में थे तो गांव सब भूल गये।
मुसीबत में आज गांव याद आ गये।।
शहर-शहर, गली-गली सब भय खा रहे।
लोग तब गांव में मौज-मस्ती सें जी रहे।।
शहर में लोग सांसों के लिए तरस रहे हैं।
स्वच्छ हवा, पानी गांव में फिक्र नही है।।
लोग अपनों को देखकर दूर भाग रहे हैं।
फिर आज सबको गांव याद आ रहे है।।
न बीमारी का डर न खाने की चिंता।
गांव में सबकुछ ठीक चल रहा है।।
आते जाते लोग गांव में हाल पूछते।
शहर में लोग अपनों से कतरा रहे।।
नेताओं की रैली और भ्रमण महंगा पड़ रहा।
शादी समारोहों ने आग में घी का काम कर दिया।।
समारोहों से गांव भी दहशत में आ गये।
यहां भी अब लोग कोरोना की जद में आ गये।।
पहाड़ भी आज कैन्टेन्टमेंट जोन बन गये।
भय का माहौल सब जगह फैल गया।।
अब गांव में भी लोगों को संभलकर रहना होगा।
मास्क, दो गज की दूरी का ध्यान रखना होगा।।
कवि का परिचय
डॉ. दलीप सिंह बिष्ट
असिस्टेंट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय अगस्त्यमुनि रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड।
डॉ. दलीप सिंह बिष्ट मूल रूप से टिहरी जनपद में विकासखंड देवप्रयाग के अन्तर्गत त्यालनी गाँव निवासी हैं। उन्होंने विभिन्न राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए हैं। इसके अलावा विभिन्न ब्लाग, पोर्टल, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं तथा पुस्तकों में सात दर्जन से अधिक शोध लेख/लेख प्रकाशन के अलावा तीन पुस्तकें ‘हिन्दी गढ़वाली काव्य संग्रह’, ‘उत्तराखण्डः विकास और आपदायें’ एवं ‘मध्य हिमालय: पर्यावरण, विकास एवं चुनौतियां’ प्रकाशित हो चुकी हैं। भारतीय राजनीति विज्ञान परिषद् (IPSA) एवं यूनाइटेड प्रोफेसनल एण्ड स्कालर फार एक्शन (UPSA) के आजीवन सदस्य हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत सुन्दर रचना