शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता-पनघट (धारे)

पनघट (धारे)
मुझको तो मेरे गांव के ही,
पनघट (धारे) प्यारे लगते हैं।
गर्मी वर्षा आंधी हो या तूफान,
अविरल बहते रहते हैं।।
अडिग खड़े कड़ी धूप में भी,
नहीं सूर्य ताप से डरते हैं।
तृप्त हमारे मन को करने,
शीतल जल ही जल देते हैं।।
बीता बचपन आई जवानी,
हम आहें भरते रहते हैं।
कभी हाथों से कभी मुंह लगाकर,
ठंडा जल हम उनका पीते हैं।।
कितनी महानता है मेरे पनघट की,
बिना रुके जो बहते हैं।
मानव, पशु पक्षी हो या गूंगे बहरे,
स्वाद उसका सभी भी समझते हैं।।
कितनी गगरियां भरी होगी हमने,
पनघट उफ्फ तक नहीं करते हैं।
ऐसा समर्पण हो हृदय में सबके,
पनघट जैसा हम बन सकते हैं।।
झर झर मधुर स्वर पनघट के,
मन को प्रफुल्लित करते हैं।
कल कल छल छल निनाद करते,
संगीत कानों में मेरे भरते हैं।।
इसीलिए तो मेरे गांव के पनघट,
मुझको ही प्यारे लगते हैं।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
बहुत सुन्दर रचना?????
गाँव के झरने