हिंदी की नई कहानी आंदोलन के प्रमुख हस्ताक्षर एवं वरिष्ठ कथाकार सुभाष पंत का निधन

हिंदी के जाने माने कथाकार सुभाष पंत का आज सोमवार सात अप्रैल की सुबह देहरादून में अपने डोभालवाला स्थित आवास में निधन हो गया। सोमवार को ही हरिद्वार में उनकी अंत्येष्टि भी संपन्न हो गई। सुभाष पंत के निधन से देश के साहित्यजगत में शोक की लहर व्याप्त है। हाल में ही उत्तराखंड सरकार ने उन्हें उनके साहित्यिक अवदान के लिए साहित्य के क्षेत्र में पहली वार शुरू किए गए सबसे बड़े राजकीय सम्मान साहित्यभूषण से सम्मानित किया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सुभाष पंत का जन्म 14 फरवरी 1939 को देहरादून में हुआ था। वह मूल रूप से कुमाऊं मंडल के रहने वाले थे। हिंदी की नई कहानी आंदोलन के प्रमुख हस्ताक्षर सुभाष पंत बीते पांच दशक से निरंतर रचना-कर्म में संलग्न थे। वर्ष 2023 में उन्हें प्रतिष्ठित विद्यासागर साहित्य सम्मान से भी सम्मानित किया गया था। आजकल वह अपनी आत्मकथा भी लिख रहे थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सुभाष पंत के दो उपन्यास सुवह का भूला और पहाड़ चोर काफी चर्चित रहे। उनकी कई अन्य कहानियाँ पाठ्यक्रमों में शामिल हैं और उनके साहित्य पर अनेक विश्वविद्यालयों में शोध संपन्न और जारी है। सुभाष पंत ने सन् 1961 में भारतीय वन अनुसंधान (एफआरआई) देहरादून से राजकीय सेवा की शुरुआत की थी और वह सन् 1991 में भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद देहरादून से वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उनकी पहली कहानी गाय का दूध वर्ष 1973 में सारिका के विशेषांक में प्रकाशित हुई थी। ये कहानी उस अंक की सर्वाधिक उल्लेखनीय कहानी घोषित हुई थी और अंग्रेजी समेत अनेक भाषाओं में अनूदित हुई। एक दौर में वह रंगकर्म से भी जुड़े रहे। नाट्य लेखन, निर्देशन व मंच परिकल्पना के साथ उनके हिस्से में ये सफर भी सुहाना रहा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने चिड़िया की आँख ((नाटक) भी लिखा। वह वातायन नाट्य संस्था के संस्थापक अध्यक्ष और संवेदना साहित्य संस्था के संस्थापक सदस्य रहे। अब तक उनके करीब एक दर्जन कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके थे। इनमें तपती हुई जमीन, चीफ के वाप की मौत, इक्कीस कहानियाँ, जिन्न और अन्य कहानियां, मुन्नीवाई की प्रार्थना, दस प्रतिनिधि कहानियां, एक का पहाड़ा, छोटा होता हुआ आदमी, इक्कीसवीं सदी की दिलचस्प दौड़ आदि शामिल हैं।
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो।

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।