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November 10, 2024

जन्मदिवस 24 दिसंबर पर विशेषः उत्तराखंड आंदोलन के प्रणेता स्व. इंद्रमणि बडोनी को समर्पित कविता-उत्तराखंड का गांधी

उत्तराखंड का गांधी
बूढ़ा गांधी देखा मैंने, प्रथम बार पचहत्तर में,
गंजे सिर पर पीछे अलके, चंद्रकांएं थी गालों पर।
लहराती चांदी सी फसलें, दमक रही थी बालों पर,
जो धवल दुग्ध में स्वर्णिम किरणें नहा रही हों गालों पर।
वह किताब का गांधी नहीं था जो राजघाट में रहता है,
वह उत्तराखंडी संत विदेह था जो हर हृदय में बसता है।
उस गांधी को देखा हमने, सदा मलेथा की गूलों में,
उस संत ऋषि का करतब देखा, नृत्य जो चौफल्या फूलों में।
वह गांधी का प्रतिपर्ण था, वह सत्य अहिंसा वादी था,
आत्म बल नेतृत्व क्षमता में, उसका न कोई शानी था।
समाज सेवा सदा समर्पित तीन बार विधायक चुना गया,
राजनीति के दुष्चक्रों में, वह वीर पुरोधा बना रहा। (कविता जारी, अगले पैरे में देखें)

संघर्षों में पैदा होकर, संघर्षशील वह सदा रहा।
नए प्रांत की नींव डालकर, महाप्रयाण का मार्ग चला।
वह सत्ता का लोलुप नहीं था, सत्ता में भी बना रहा,
अत्याचार अन्याय विरोधी, अंतिम क्षण तक बना रहा।
जनक सुरेशा पंडित ज्ञानी, कलावती थी जननी,
महिधर मेधनी अनुज आपके, सुरजी थी अर्धांगिनी।
मरते दम तक साथ निभाया, उपलों से भोजन पकवाया,
दृढ़ता के विश्वास सूत्र में, बंधकर जिसने साथ निभाया ।
गढ़ माता के वीर अनेकों, धीर- धीर बडोनी जैसे हैं,
लेकिन गृहस्थी सन्यासी बिरले जन ही ऐसे हैं।
ग्राम अखोड़ी याद रहेगा, इस दिव्यात्मा के कारण,
नाम इंद्रमणि अमर रहेगा, उसका पथ कर धारण।
अब चलता हूं पथ पर अपने, देर बहुत हो आई है ।
लेकिन उत्तराखंडी इस गांधी की ,याद हमें सताती है ।
इस नक्षत्र के स्मरण मात्र से,मध्य हिमालय धन्य हुआ,
समय समय पर महा समर में, उत्तराखंड का मान बढ़ा।

कवि का परिचय
सोमवारी लाल सकलानी, निशांत।
सुमन कॉलोनी, चंबा, टिहरी गढ़वाल।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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