Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

December 23, 2024

ललित मोहन गहतोड़ी का गीत-धन दौलत

धन दौलत
आप की है के बाप की है…
आप की है के बाप की है…
लुटा रहे जो धन दौलत वो
बोलो किस जनाब की है
आप की है के बाप की है…
धन दौलत जो खर्च कर रहे
सोचो क्या सच आप की है
आप की है के बाप की है…
धन दौलत जो… (जारी, अगले पैरे में देखिए)

जुल्फें संवरी सुबह हो दिखते
दिन भर क्या मजमा लगाते
ढलते दिन तक हालत पतली
चाहत दारू मुर्गा मछली
कटी जेब क्या साब की है
आप की है के बाप की है…
धन दौलत जो… (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)

फ्री की दारू ठूंस रहे या
मदहोशी में झूम रहे हो
सुल्फा जमके फूंक रहे क्या
आंख दिखाते घूम रहे हो
अकड़ आखिर किस बात की है
आप की है के बाप की है…
धन दौलत जो… (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)

गिरते पड़ते पहुंच रहे घर
भूखे बच्चे देख रहे सब
आशा भर भर जेब टटोल रहे
मन ही मन यह बात सोच रहे
फटी जेब क्या बाप की है
आप की है के बाप की है…
धन दौलत जो…
रचनाकार का परिचय
रचनाकार ललित मोहन गहतोड़ी काली कुमाऊं चंपावत से प्रकाशित होने वाली वार्षिक सांस्कृतिक पुस्तक फुहारें के संपादक हैं। वह जगदंबा कालोनी, चांदमारी लोहाघाट जिला चंपावत, उत्तराखंड निवासी हैं।
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो।

+ posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page