ललित मोहन गहतोड़ी का गीत-धन दौलत
धन दौलत
आप की है के बाप की है…
आप की है के बाप की है…
लुटा रहे जो धन दौलत वो
बोलो किस जनाब की है
आप की है के बाप की है…
धन दौलत जो खर्च कर रहे
सोचो क्या सच आप की है
आप की है के बाप की है…
धन दौलत जो… (जारी, अगले पैरे में देखिए)
जुल्फें संवरी सुबह हो दिखते
दिन भर क्या मजमा लगाते
ढलते दिन तक हालत पतली
चाहत दारू मुर्गा मछली
कटी जेब क्या साब की है
आप की है के बाप की है…
धन दौलत जो… (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
फ्री की दारू ठूंस रहे या
मदहोशी में झूम रहे हो
सुल्फा जमके फूंक रहे क्या
आंख दिखाते घूम रहे हो
अकड़ आखिर किस बात की है
आप की है के बाप की है…
धन दौलत जो… (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
गिरते पड़ते पहुंच रहे घर
भूखे बच्चे देख रहे सब
आशा भर भर जेब टटोल रहे
मन ही मन यह बात सोच रहे
फटी जेब क्या बाप की है
आप की है के बाप की है…
धन दौलत जो…
रचनाकार का परिचय
रचनाकार ललित मोहन गहतोड़ी काली कुमाऊं चंपावत से प्रकाशित होने वाली वार्षिक सांस्कृतिक पुस्तक फुहारें के संपादक हैं। वह जगदंबा कालोनी, चांदमारी लोहाघाट जिला चंपावत, उत्तराखंड निवासी हैं।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।