कविता में पढ़िए, राम बाली संवाद, भाग-2, कवि- प्रदीप मलासी
(श्री राम का तीर लगने से बाली मरणासन्न अवस्था में पहुंच गया है। पढ़िए दोनों का संवाद।)
बाली –
हे दशरथ नंदन, हे राजकुमार।
ये धर्म नीति है या है अत्याचार।
सामने से आकर लड़ लेते मुझसे।
क्यों किया मुझपर छुपकर वार।
श्री राम –
सुन अधम सुन खल मूरख।
आज धर्म का पाठ पढ़ाता है।
अनुज भार्या को हर कर भी तू।
तनिक भी ना लज्जाता है।
अनुज-वधू , सहोदरा या..
हो पूत की नारी।
ये सब रूप तनुजा के हैं।
ना डालो दृष्टि इन पर कारी।
पाप अधम का किया है तूने।
अब क्यों बात बनाता है।
धर्म अधर्म की बात ना कर तू।
अन्यायी का मर्दन पुण्य कहलाता है।
बाली –
मैं निरा मूढ करता अभिमान।
प्रभो तुम्हें ना पाया पहचान।
एक विनती प्रभो जाना मान।
अंगद मेरा प्रिय पुत्र नादान।
शरण उसे ले लेना कृपानिधान।
पढ़ें: कविता में पढ़िए राम बाली संवाद, भाग 1, कवि- प्रदीप मलासी
कवि का परिचय
नाम-प्रदीप मलासी
शिक्षक, राजकीय प्राथमिक विद्यालय बुरांसिधार घाट, जिला चमोली।
मूल निवासी- श्रीकोट मायापुर चमोली गढ़वाल, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
सुन्दर संवाद