हिमालय की जटिल परिस्थितियों में पढ़ने वाले बच्चों को समर्पित कविता-सृजन का बीज
सृजन का बीज
तम के खोल में छिपा ‘सृजन का बीज’
दरख्त होजाना चाहता है..
चाहता अस्तित्व बनाना
थाह पाना चाहता है..
तम के खोल में छिपा ‘सृजन का बीज’
दरख्त होजाना चाहता है..
उत्थान की नमी कलेजे समेटे
रूखे रेगिस्तान के पार जाना चाहता है..
रुग्णता- दुर्बलता को जीत कर..
नव यौवन पाना चाहता है..
तम के खोल में छिपा ‘सृजन का बीज’
दरख्त होजाना चाहता है..
अभ्र के तिमिर में एक सूरज नया उगाना चाहता है..
जड़ता के कालिख को आज कंचन बनाना चाहता है..
तम के खोल में छिपा ‘सृजन का बीज’
दरख्त होजाना चाहता है..
कवि का परिचय
प्रदीप मलासी (अध्यापक)
लोअर बाजार चमोली, उत्तराखंड।





