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December 19, 2024

साहित्यकार मुकुन्द नीलकण्ठ जोशी की कविता, रेलगाड़ी की बर्थ का सन्देश

साहित्यकार मुकुन्द नीलकण्ठ जोशी की कविता, रेलगाड़ी की बर्थ का सन्देश।

रेलगाड़ी की बर्थ का सन्देश

तीन शून्य एक शून्य एस दो की पन्द्रह हूँ।
खाली नहीं कभी रहती जो बर्थ शयन की मैं वह हूँ।।
लोगों की सेवा करने को ही मेरा है जन्म हुआ।
यात्री सोयें सारे सुख से इसमें ही वह धन्य हुआ।।….1

पिछले चार पाँच वर्षों से मैं डिब्बे में जड़ी गई।
मेरे जैसी मेरी सारी बहनें भी की खड़ी गईं।।
मुझ पर अबतक कितने सोये गिनती करना है मुश्किल।
मगर पता है पायी सबने अपनी अपनी है मंजिल।।….2

पर इतने सालों में मेरा जीवन ज्ञान समृद्ध हुआ।
हर्षित शंकित चिंतित दुःखित कभी रुद्ध या क्रुद्ध हुआ।।
भाँति भाँति के बाल तरुण या वृद्ध पुरुष स्त्री जन आये।
कभी कभी कुछ ऐसे भी थे जैसे हों वे चौपाये।।….3

कुछ तो ऐसे सुखी जीव थे ज्यों ही लेट गये सोये।
कुछ पर रहे करवटें लेते जाने कहाँ किधर खोये।।
कुछ खटके पर तुरत जागते कुछ ने तो बेचे घोड़े।
ज्यादहतर तो भले लोग थे, मिले चोर भी पर थोड़े।।….4

कभी प्यार में डूबी जोड़ी कभी विरहिणी तपती।
कभी उबाऊ यात्रा या फिर पल में धरती नपती।।
कभी सुनायी देते मुझको पति पत्नी के खटके।
कभी किसी बाला के दिखते नाहक लटके झटके।।….5

गंदे बुड्ढे का देखा था लापरवाही बाना।
मूँगफली खाना औ फिर छिलके वहीं बिछाना।।
सामाजिक जिम्मेदारी के करते वारे न्यारे।
भारत माँ के कई नागरिक दिखे अक्ल के मारे।।….6

मैं तो देख चुकी हूँ अब तक जीवन के रंग सारे।
कभी वीर गम्भीर लड़ाकू कभी भाग्य के मारे।।
मैंने देखे एक भाव से भाँति भाँति के सब रस।
लेकिन मैं खुद अलग ही रही इन सबसे बरबस।।…7

स्वयं पात्र हों नाटक के पर बस नाटक ही समझें।
कमल पत्र पर जमी बूँद से नहीं कभी भी उलझें।।
आत्ममुग्ध हो रहें सदा ही कैसा भी हो परिवेश।
परम शान्ति आनन्द तभी है यही शायिका का सन्देश।।….8
नोटः [ वर्णन की सुविधा के लिये भले ही किसी रेलगाड़ी और उसकी बर्थ का नंबर दिया हो पर सन्देश किसी भी गाड़ी की किसी भी बर्थ का हो सकता है। ]
कवि का परिचय
नाम: मुकुन्द नीलकण्ठ जोशी
शिक्षा: एम.एससी., भूविज्ञान (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय), पीएचडी. (हे.न.ब.गढ़वाल विश्वविद्यालय)
व्यावसायिक कार्य: डीबीएस. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, देहरादून में भूविज्ञान अध्यापन।
मेल— mukund13joshi@rediffmail.com
व्हॉट्सएप नंबर— 8859996565

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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