शिक्षक एवं कवि रामचंद्र नौटियाल की कविता- आ जा न वसन्त

आ जा न वसन्त!
ह्रदय से सारे तनाव
लाभ हानि
सफल असफल
सम्मान- अपमान
सारे द्वन्द्व
अब मिटा दे मेरे मन से
बसन्त की सुबह
और शाम भर दे
आ जा न वसन्त! (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
तेरी इन्तजारी में
मैं पतझड़ को
अलविदा कर चुका मैं
एक बार आ जा न वसन्त
फूलदेई मधु मास की तरह
मधुरिम बुरांस के
फूलों की तरह
मेरे पहाड को
संगीतमय करती
हिलांस की तरह
आ जा न वसन्त! (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
सुर में सुर मिलाती
कोयल की तरह
हरियाली व खुशहाली
लाती प्रकृति के रंग
और उमंग की तरह
आ जा ना वसन्त
यौवन व किशोरपन
की तरह आ जा ना वसन्त!
कवि का परिचय
शिक्षक रामचन्द्र नौटियाल गांव जिब्या पट्टी दशगी जिला उत्तरकाशी उत्तराखंड के निवासी हैं। रामचन्द्र नौटियाल जब हाईस्कूल में ही पढ़ते थे, तब से ही लेखन व सृजन कार्य शुरू कर दिया था। वह कई साहित्यिक मंचों पर अपनी प्रस्तुतियां देते रहते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।