कवि आशीष उपाध्याय की किसान की व्यथा को लेकर कविता- हम भी किसान रहे हैं
हम भी किसान रहे हैं।
सर पर कर्ज़ पीठ पर कोड़ों के निशान रहे हैं।
वो उतने पूजे गए जो जितने बेईमान रहे हैं।।
हम भी भाग जाते छोड़कर वतन अपना लेकिन।
पुरखों को प्यार था मिट्टी से और हम भी किसान रहे हैं।।
कभी ख़ूब बरखा तो कभी प्रचण्ड सूखा झेलते हैं।
नस्लों का भविष्य लगाकर दांव हम खेल खेलते हैं।।
कर्ज़ न चुका पाने पर, मौत को चूमते हैं हम।
अनाज सही मूल्य पर न बिकने से परेशान रहे हैं।।
पुरखों को प्यार था मिट्टी से और हम भी किसान रहे हैं।।
बच्चों को शिक्षा की उचित अच्छी व्यवस्था नहीं।
परदेश में भेज पढ़ायें बच्चों को यह अवस्था नहीं।।
सरकारी विद्यालयों में अध्यापकों की बड़ी कमी है।
निजी विद्यालयों के शुल्क चुकाने में गिरवी जमीं हैं।।
आजकल सियासत के जल्लाद हमपर मेहरबान रहे हैं।।
पुरखों को प्यार था मिट्टी से और हम भी किसान रहे हैं।।
जानवरों के प्रकोप से बचती नहीं है हमारी फ़सल।
व्याज को छोड़ो यहाँ डूब जाती है हमारी असल।।
खेतों के धुओं से निकलता है प्रदुषण और जहर।
कारखानों के पानी और धुओं से शुद्ध होता है शहर।।
चुप ही रहेंगे जब अभी तक हम बेजुबान रहे हैं।।
पुरखों को प्यार था मिट्टी से और हम भी किसान रहे हैं।।
कवि का परिचय
नाम-ब्राह्मण आशीष उपाध्याय (विद्रोही)
पता-प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश
परिचय-पेशे से छात्र और व्यवसायी युवा हिन्दी लेखक ब्राह्मण आशीष उपाध्याय #vद्रोही उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद के एक छोटे से गाँव टांडा से ताल्लुक़ रखते हैं। उन्होंने पॉलिटेक्निक (नैनी प्रयागराज) और बीटेक ( बाबू बनारसी दास विश्वविद्यालय से मेकैनिकल ) तक की शिक्षा प्राप्त की है। वह लखनऊ विश्वविद्यालय से विधि के छात्र हैं। आशीष को कॉलेज के दिनों से ही लिखने में रूची है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।