श्रृंगार रस में होली गीत, गीतकार- ललित मोहन गहतोड़ी
गोरी तेरी सूरत भलि स्वानि
भलि स्वानि, भलि स्वानी, भलि स्वानी
गोरी तेरी सूरत भलि स्वानि…।।टेक।।
गोरी तेरी मूरत भलि स्वानि…।।टेक।।
लाललाल बिंदिया माथे पे लगावे।।1।।
माथे की शोभा अति स्वानि…
गोरी तेरी सूरत भलि…
कालीकाली कजरारी देखो आंखें।।2।।
आंख की शोभा अति स्वानि…
गोरी तेरी सूरत भलि…
रंगबिरंगी चूनर छज रही।।
तन की शोभा अति स्वानि…
गोरी तेरी सूरत भलि…
पूंजि हाथ में पैरों में पायल।।3।।
नथनी शोभा अति स्वानि…
गोरी तेरी सूरत भलि…
घूंघट बीच झरोखे से झांके।।4।।
घूंघट शोभा अति स्वानि…
गोरी तेरी सूरत भलि….
रंगमहल से निकली देखो।।5।।
गोरी काली कति स्वानि…
गोरी तेरी सूरत भलि…
कवि का परिचय
नाम-ललित मोहन गहतोड़ी
शिक्षा :
हाईस्कूल, 1993
इंटरमीडिएट, 1996
स्नातक, 1999
डिप्लोमा इन स्टेनोग्राफी, 2000
निवासी-जगदंबा कालोनी, चांदमारी लोहाघाट
जिला चंपावत, उत्तराखंड।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
सुंदर रचना?????