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June 26, 2025

भाजपा सांसद की शिक्षिका पत्नी की पिथौरागढ़ से दून में तैनाती को जूनियर शिक्षक संघ के पूर्व महामंत्री ने जताया रोष

भाजपा सरकार ने अपनी पार्टी के सांसद की शिक्षिका पत्नी को पिथौरागढ़ से देहरादून एससीईआरटी में डेपुटेशन पर तैनाती दे दी। इसे लेकर राजनीतिक दलों को साथ ही शिक्षक संगठनों में हल्ला मचा है।

भाजपा सरकार ने अपनी पार्टी के सांसद की शिक्षिका पत्नी को पिथौरागढ़ से देहरादून एससीईआरटी में डेपुटेशन पर तैनाती दे दी। इसे लेकर राजनीतिक दलों को साथ ही शिक्षक संगठनों में हल्ला मचा है। यह मेहरबानी अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ के सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय टम्टा की शिक्षिका पत्नी सोनल टम्टा पर की गई है। यह आदेश अलग से किया गया। 20 दिसंबर के आदेश में कहा गया है कि सोनल टम्टा, प्रवक्ता अंग्रेजी, राजकीय इंटर कॉलेज जुम्मा पिथौरागढ़ को एससीईआरटी देहरादून में प्रवक्ता के रिक्त पद के प्रति प्रतिनियुक्ति / सेवा स्थानान्तरण पर तैनात किया जाता है। इस ट्रांसफर को लेकर शिक्षा विभाग व राजनीतिक गलियारे में हलचल मची हुई है। अंग्रेजी प्रवक्ता सोनल टम्टा का ट्रांसफर राजकीय इंटर कालेज जुम्मा पिथौरागढ़ किया गया था, लेकिन लंबे समय से वे अवकाश पर चल रही थी।
उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी एवं जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ उत्तराखंड के पूर्व महामंत्री राजेन्द्र बहुगुणा ने इस तबादले पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा कि अंधा बांटे रेवड़ी अपन -अपन को देय। उत्तराखंड में पारदर्शी शासन का दम भरने वाला तन्त्र आखिर वास्तविक जरुरतमंदों, गम्भीर बीमार, दशकों से विकट दुर्गम या अन्य क्षेत्रों में सेवा देने वाले कार्मिकों / शिक्षकों के स्थानान्तरण में कब देगा। ये चिंतनीय विषय है। स्थानान्तरण एक्ट दिखावे को तो बना लिया गया। आम जरूरतमंद कार्मिक, शिक्षक स्थानान्तरण से महरुम हैं। राजनैतिक आकाओं के जो स्थानान्तरण हो रहे हैं, वो किस तरह से हैं, सबके सामने आ रहे हैं।
उन्होने कहा कि सरकार और शासन से सांगठनिक स्तर पर निरंतर मांग की जाती रही है कि 10 फीसद तक ही स्थानान्तरण क्यो? वो भी प्रतिवर्ष सुनिश्चित नहीं हो पा रहे हैं। रिक्ति के सापेक्ष स्थानान्तरण व्यवस्था आखिर क्यों लागू नहीं की जाती है। नियुक्ति/ पदोन्नति में काउंसलिंग को क्यो बार-2 मांग करने के बाबजूद भी नजरंदाज किया जा रहा है।पूर्व स्थानान्तरण नियमावली में पारदर्शी यह व्यवस्था निहित थी।
उन्होंने सवाल उठाए कि पूरी सेवाकाल में सभी के लिए न्यूनतम दुर्गम सेवा अवधि का प्राविधान आखिर क्यों नहीं है। भले ही वह सीएम का ही पारिवारिकजन क्यों न हो। कार्यस्थलों, विद्यालयों का वास्तविक भौगौलिक परिस्थिति के आधार पर श्रेणीकरण क्यों नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पूर्व में स्थानान्तरण, पदोन्नति नियमावली में यथास्थिति, ए, बी, सी, डी कार्यस्थल, विद्यालय श्रेणीकरण मानकानुसार प्राविधित थी। अब मनमर्जी चल रही है। उन्होंने कहा कि यदि सब कुछ इसी तरह यह चलता रहा तो राज्य गठन की अवधारणा पूरी नहीं होती। साथ ही ये आम कार्मिक और शिक्षकों के साथ अन्याय भी है। उन्होंने कहा कि सभी संगठनों को इसे बेहद गम्भीरता से लेना होगा।

Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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