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June 15, 2025

सिटीजन फॉर ग्रीन दून ने वृक्षों की सुरक्षा के लिए कार्रवाई का किया आग्रह, बताए गिरने के कारण, हाल ही में पेड़ गिरने से दो की हुई थी मौत

उत्तराखंड में मानसून के आगमन से पहले ही तेज बारिश और आंधी का दौर भी समय समय पर चल रहा है। देहरादून में हाल के दिनों में दो स्थानों पर पेड़ गिरने से महिला सहित दो की मौत हो गई थी। इसके बाद कई लोग और संस्थाएं जर्जर पेड़ों को हटाने की मांग करने लगे। वहीं, देहरादून के पर्यावरण को लेकर चिंतित संस्था सिटीजन फॉर ग्रीन दून (सीएफजीडी) की अलग राय है। संस्था का मानना है कि विकास के नाम पर हम ही पेड़ों की जड़ों को कमजोर कर रहे हैं। इसके लिए सरकार और जिम्मेदार संस्थाओं को ठोस प्रयास करने चाहिए। इसके लिए CFGD ने जागरुकता अभियान चला रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

देहरादून में दर्शनलाल चौक के निकट संस्था के लोगों ने हाथों में पोस्टर लेकर शहर में पेड़ो को बचाने और पर्यावरण सुधारने के लिए जागरुकता अभियान चलाया। इस दौरान पेड़ों तथा शाखाओं के गिरने के कारण दो लोगों की दुखद मृत्यु पर गहरा दुख व्यक्त किया गया। साथ ही मृतकों के परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त की गई। साथ ही ऐसी घटनाओं को रोके जाने को लेकर सुझाव भी दिए। सरकार और जिम्मेदार एजेंसियों से वृक्षों की सुरक्षा का आग्रह भी किया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि देहरादून में हाल ही में देहरादून में पेड़ गिरने की कई घटनाएं हुई। दो घटनाओं में दो लोगों की जान चली गई है। पलटन बाजार में खरीदारी करने गई एक महिला पर पेड़ गिरने से उसकी मौत हो गई, जबकि उसकी बेटी बाल-बाल बच गई। इससे पहले एफआरआई में एक ऑटो चालक की भी पेड़ गिरने से जान चली गई थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वक्ताओं ने कहा कि प्रत्येक मानसून में बारिश राहत लाती है। साथ ही एक आवर्ती समस्या को भी उजागर करती है। कमज़ोर पेड़ों के कारण होने वाली दुर्घटनाएं टालने योग्य हैं। ऐसी घटनाओं को अक्सर “खतरनाक” के रूप में गलत लेबल किया जाता है। असल कारण ये है कि पेड़ों को गिरने से बचाने के लिए कोई ठोस काम नहीं हो रहा है। उल्टे पेड़ों की जड़ों को कमजोर किया जा रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वक्ताओं का कहना था कि भारत सरकार के दिशा निर्देशों के बावजूद पेड़ों के संरक्षण के लिए उचित वायु संचार, जल तथा पोषण सुनिश्चित नहीं किया जा रहा है। इसके लिए पेड़ों की जड़ वाले भाग के ऊपर के चारों ओर के क्षेत्र को 1.5 मीटर तक कंक्रीट मुक्त किया जाना अनिवार्य है। वहीं, शहर में कई पेड़ की जड़ के ऊपर वाले हिस्से कंक्रीट से दबे हुए हैं। ऐसे में इन पेड़ों को पोषण कहां से मिलेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इसके अलावा लापरवाह शहरी विकास प्रथाएं भी पेड़ों को नुकसान पहुंचा रही हैं। जैसे जेसीबी का उपयोग करके सड़क चौड़ीकरण के कार्य भी पेड़ों की जड़ों को और अधिक नुकसान पहुंचा रहे हैं। इससे तेज हवा या भारी बारिश के दौरान पेड़ कमजोर होने लगते हैं। वहीं, पेड़ों की सुरक्षा के उपाय की बजाय इन जीवनदायी पेड़ों को खतरा बताकर तुरन्त गिरा दिया जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

तर्क दिया गया कि क्या बाढ़ के दौरान लोगों की जान लेने वाली नदियों को “खतरनाक” माना जाना चाहिए। क्या नदियों के जल प्रवाह को रोक दिया जाना चाहिए। क्या सड़कों को बंद कर दिया जाना चाहिए, जहाँ दुर्घटनाओं के कारण हर साल अनगिनत लोगों की जान चली जाती हैं। पानी और सड़कों की तरह ही पेड़ जीवन के लिए आवश्यक हैं। फिर भी कुप्रबंधन उन्हें ख़तरनाक बना देता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वक्ताओं ने कहा कि संस्था की ओर से वर्षों से अधिकारियों से भारत सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन करने, पेड़ों के आधारों को कंक्रीट से मुक्त करने और पेड़ों की सुरक्षा के लिए शहरी विकास एजेंसियों के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) स्थापित करने का आग्रह किया जा रहा है। जब इन अपीलों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो हमने अपने स्वयं के कंक्रीट हटाने के अभियान शुरू किए और खतरे में पड़े पेड़ों का सर्वेक्षण और पहचान करने के लिए वन अनुसंधान संस्थान (FRI) जैसी संस्थाओं के साथ साझेदारी का प्रस्ताव रखा। अफसोस की बात है कि इन सुझावों को नज़रअंदाज़ कर दिया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

हाल की त्रासदियों ने एक प्रतिक्रियात्मक प्रतिक्रिया को प्रेरित किया है। पेड़ों को “खतरनाक” के रूप में लेबल करना और अंधाधुंध कटाई शुरू करना एक आम बात है। यह दृष्टिकोण मूल कारणों को संबोधित करने में विफल रहता है। सीएफजीडी ने अधिकारियों से भारत सरकार के दिशा-निर्देशों को लागू करके, पेशेवर वृक्ष स्वास्थ्य आकलन करके और शहरी नियोजन में वृक्ष संरक्षण को एकीकृत करके पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देने का आह्वान किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

संस्था के सदस्यों का कहना है कि केवल सक्रिय उपायों के माध्यम से ही हम अपने शहरी क्षेत्र को संरक्षित कर सकते हैं और सभी नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ा सकते हैं। संस्था ने राष्ट्रपति आशियाना के लिए बेवजह काट दिए गये सौ साल पुराने तून के पेड़ के साथ ही कई अन्य पेड़ों को काटने का भी विरोध किया। साथ ही कहा कि राष्ट्रपति ने पार्क के लिए किसी पेड़ को काटे जाने की सख्त मनाही की थी। इस मौके पर डॉ. रवि चोपड़ा, हिमांशु अरोड़ा, विजय भट्ट और इरा चौहान ने विचार व्यक्त किए।
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Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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