छोड़कर बादलों को पानी हुआ फ़रार। धूप बिछाकर जाजिम पसर गई धरा पर। हवाएं भी दुबक गईं कहीं मुंह छिपाकर।...
साहित्य जगत
अनेकों रंग दिखलाता है मौसम इन पहाड़ों का। कभी लगती है तीखी धूप कभी एहसास जाड़ों का।। कभी चलती है...
वक़्त का मुसाफ़िर वक़्त का मुसाफ़िर निकल पड़ा सफ़र पर। पथ अनजान मंज़िल खोई - खोई है। साथ में न...
भूख़ के परिंदे भूख़ पेट से खेलती रही, रात भर। देखता रहा रतजगा रोटियों के ख़्वाब। मन मन ही मन...
मध्य प्रदेश के जबलपुर में अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के तीन दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन में देशभर से आये 500...
औलाद औलाद बाप से हिसाब मांगती हैं। पैदा क्यों किया, का जवाब मांगती हैं। जिन आंखों ने कभी पढ़ें नहीं...
आज़ाद देश में भूख की न स्याह रात हो। पेट से न मुलाक़ात हो। ग़रीबों की बस्ती में अब भूख...
तो जानूं ग़रीबों के आंसू पी लें, तो जानूं। ग़रीब आज सुख से जी लें, तो जानूं। उनकी राहों में...
मुहब्बत जीत गई। नफ़रत हार गई। प्रेम का सोत कभी सूख नहीं सकता। बरसने से नेह कभी रूक नहीं सकता।...
मनभावन सावन है। मौसम भी पावन है। मैली धरती का भी अब उजला दामन है। कृष्ण - भक्ति में डूबा...