अशोक आनन का गीत- ज़िंदगी कंदील हो गई

ज़िंदगी कंदील हो गई
आईनों के शहर में
चेहरों पर नक़ाब है।
हवाओं को
आने की इजाज़त नहीं है।
ताका-झांकी
सूरज की शराफ़त नहीं है।
जलती हुई दुपहर में
चेहरों पर जवाब है।
हर आदमी
यहां डरा – डरा – सा लगे।
आसमां ही
सदा यहां ज़मीं को ठगे।
हुस्ने – बहार की घर में
चेहरों पर किताब है।
पत्थरों से
इनकी पटने लगीं दूरियां ।
नज़दीकियां
इनकी हो गईं मज़बूरियां।
जीवन के इस सफ़र में
चेहरों पर न आब है।
मंज़िलें भी
राहों में तब्दील हो गईं।
ज़िंदगी भी
टिमटिमाती क़दील हो गई।
पतझड़ के सहर में भी
चेहरों पर गुलाब है।
कवि का परिचय
अशोक ‘आनन’, जूना बाज़ार, मक्सी जिला शाजापुर मध्य प्रदेश।
Email : ashokananmaksi@gmail.com
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।