अशोक आनन का गीत- आंसुओं की बारात
सियासत की बिछने लगी बिसात।
देश को पता तो चली औकात।
फूटी आंख न जो कभी सुहाए
मिलने लगी उन्हीं को सौग़ात।
खेलना जिनसे शौक है जिनका
मचलने लगे अब वही जज़्बात।
दावे उनके हैं कितने सच्चे
घरों में जाकर देखो हालात।
अंखियों के महलों से लेसज-धजकर
निकली फ़िर आंसुओं की बारात।
हवाएं आग के साथ कर रहीं
घी डालकर रोज़ घात- प्रतिघात।
जिन नेवलों को कोसते थे सांप
होने लगीं उन्हीं से मुलाक़ात।
रोज़ ही शीशों से पत्थरों को
अब लगने लगा ज़ोर का आघात।
देखना, चुनाव के बाद होगी
अश्कों की फ़िर झमाझम बरसात।
कवि का परिचय
अशोक ‘आनन’, जूना बाज़ार, मक्सी जिला शाजापुर मध्य प्रदेश।
Email : ashokananmaksi@gmail.com
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