अशोक आनन का नवगीत- भूख़ के परिंदे

भूख़ के परिंदे
भूख़
पेट से खेलती रही,
रात भर।
देखता रहा
रतजगा
रोटियों के ख़्वाब।
मन
मन ही मन
पकाता रहा पुलाव।
नींद
आंख से खेलती रही
रात भर।
सिलवटें
पेट पर
काढ़ती रहीं कशीदे।
पेट को
नोंचते रहे
भूख़ के परिंदे।
हवा
पेड़ से खेलती रही
रात भर।
रोटियों को
याद कर
आती रहीं हिचकियां।
चूल्हे पर
औंधी
पड़ी रहीं डेगचियां।
दाल
पतीली खेलती रहीं
रात भर।
अमावस में
तारों – सी
चमकती रहीं रोटियां।
अंधियारे में
भूख़ की
बिखरती रहीं गोटियां।
रात
चौपड़ खेलती रही
रात भर।
कवि का परिचय
अशोक ‘आनन’, जूना बाज़ार, मक्सी जिला शाजापुर मध्य प्रदेश।
Email : ashokananmaksi@gmail.com
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।