अशोक आनन की कविता- सब बहरे हैं
कोलाहल के यहां
सब बहरे हैं।
दीवारें भी
सुन नहीं पाती हैं।
बैठकें भी
बतिया नहीं पाती हैं।
घण्टियों से भी
रिश्ते गहरे हैं।
द्वार की
खटखटाहट सुनता न घर।
आवाज़ें
लौट आतीं टकराकर ।
तेल डाले –
कानों के पहरे हैं। (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
बोल – बोल राम
शांत हुआ तोता।
घर को दिख रहा
घर आपा खोता ।
संवादों की अब
शांत लहरें हैं।
कानों को
कान से सुनाई न दे।
घरों में
सन्नाटा अब बिछाई दे।
थके – मांदें
होंठ भी मौन धरे हैं।
कवि का परिचय
अशोक आनन
जूना बाज़ार, मक्सी जिला शाजापुर मध्य प्रदेश।
Email : ashokananmaksi@gmail.com
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।