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December 16, 2024

देहरादून में शौर्य स्थल के लिए केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने बिल्व पत्र का पौधा किया भेंट, जानिए इससे जुड़ी खास बातें

केंद्रीय श्रम, पर्यावरण तथा वन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने आज शौर्य स्थल के लिए पवित्र बिल्व पत्र का पौधा पूर्व सांसद (राज्यसभा सदस्य) एवं युद्ध स्मारक के अध्यक्ष तरूण विजय को भेंट किया।

देहरादून के चीड़बाग में स्थित शौर्य स्थल में चीड़ के पेड़ों के बीच विशेष खासियत वाले पौध रोपित करने का सिलसिला जारी है। केंद्रीय श्रम, पर्यावरण तथा वन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने आज शौर्य स्थल के लिए पवित्र बिल्व पत्र का पौधा पूर्व सांसद (राज्यसभा सदस्य) एवं युद्ध स्मारक के अध्यक्ष तरूण विजय को भेंट किया। साथ ही शौर्य स्थल युद्ध स्मारक के भव्य निर्णाण के लिए उन्होंने अपनी भावपूर्ण शुभकामनाएं दीं। श्रावण मास में बिल्व पत्र शिवजी को अर्पित करने का विधान है। यादव ने वीर सैनिकों की याद में बिल्व पत्र का वृक्ष भेंट कर अपनी श्रद्धा व्यक्त की। पूर्व सांसद तरूण विजय की केंद्रीय मंत्री से मुलाकात उनके दिल्ली स्थित मंत्रालय में हुई थी।

शौर्यस्थल की खासियत
आपको बता दें कि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के कैंट रोड स्थित राजभवन के निकट चीड़बाग में शौर्य स्थल का निर्माण किया गया है। इस शौर्य स्थल की सबसे बड़ी खासियत ये है कि यहां पर पहले, दूसरे विश्व युद्ध के साथ भारत-पाकिस्तान और भारत-चीन युद्ध के दौरान शहीद हुए जवानों के नाम की लिस्ट लगाई गई है। शौर्य स्थल पर पाकिस्तान युद्ध का जिक्र किया गया है। इससे यहां आने वाले लोगों को भारत-पाकिस्तान व भारत-चीन युद्ध के बारे में जानकारी भी मिलेगी। यहां शहीद हुए जांबाज जवानों के नाम की सूची भी है। यहां तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पारिकर ने इसका भूमि पूजन किया था। स्मारक प्रदेश के लगभग 15 सौ शहीदों को समर्पित है। हाल ही में उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने यहां चंदन का पौधा रोपित किया था।

बिल्व पत्र के पौधे की खासियत
बिल्व, बेल या बेलपत्थर, भारत में होने वाला एक फल का पेड़ है। इसे रोगों को नष्ट करने की क्षमता के कारण बेल को बिल्व कहा गया है। इसके अन्य नाम-शाण्डिल (पीड़ा निवारक), श्री फल, सदाफल इत्यादि। इसका गूदा या मज्जा बल्वकर्कटी कहलाता है तथा सूखा गूदा बेलगिरी। बेल के वृक्ष सारे भारत में, विशेषतः हिमालय की तराई में, सूखे पहाड़ी क्षेत्रों में 4000 फीट की ऊँचाई तक पाये जाते हैं। मध्य व दक्षिण भारत में बेल जंगल के रूप में फैला पाया जाता है। इसके पेड़ प्राकृतिक रूप से भारत के अलावा दक्षिणी नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया एवं थाईलैंड में उगते हैं। इसके अलाव इसकी खेती पूरे भारत के साथ श्रीलंका, उत्तरी मलय प्रायद्वीप, जावा एवं फिलीपींस तथा फीजी द्वीपसमूह में की जाती है।
धार्मिक दृष्टि से महत्ता
धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण इसे मंदिरों के पास लगाया जाता है। हिन्दू धर्म में इसे भगवान शिव का रूप ही माना जाता है व मान्यता है कि इसके मूल यानि जड़ में महादेव का वास है तथा इनके तीन पत्तों को जो एक साथ होते हैं। उन्हे त्रिदेव का स्वरूप मानते हैं। परंतु पाँच पत्तों के समूह वाले को अधिक शुभ माना जाता है, अतः पूज्य होता है। धर्मग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। इसके वृक्ष 15 से 30 फीट ऊँचे कँटीले एवं मौसम में फलों से लदे रहते हैं। इसके पत्ते संयुक्त विपत्रक व गंध युक्त होते हैं तथा स्वाद में तीखे होते हैं। गर्मियों में पत्ते गिर जाते हैं तथा मई में नए पुष्प आ जाते हैं। फल मार्च से मई के बीच आ जाते हैं। बेल के फूल हरी आभा लिए सफेद रंग के होते हैं व इनकी सुगंध भीनी व मनभावनी होती है।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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