विज्ञान की यह कविता बयां करती है क्या है मच्छर
मच्छर
कमला रहती सदा कमल में और हिमालय पर शंकर
श्रीहरि सोते सागर जल में कारण एकमात्र मच्छर
विनोद के ये वचन छोड़ दें तो भी यह तो निश्चित है
नन्हें इस प्राणी से मानव रहता सदैव शंकित है
काया यद्यपि इसकी छोटी, होता कार्य परन्तु बड़ा
मानव के सम्मुख मच्छर का प्रश्नचिन्ह है सदा खड़ा
पता न कितनी हुई पीढ़ियाँ समाप्त मच्छर के मारे
और पीढ़ियों से हमने भी अगणित मच्छर हैं मारे
आर्थ्रोपोड जाति का यह है नन्हा मुन्ना सा कीड़ा
गुन गुन कर उड़ता फिरता है चलती है अविरत क्रीड़ा
कहते कवि ये पूर्वजन्म के जिनकी कविता सुनी नहीं
सुना सुना कर कान पकाते, बदला लेते हैं वे ही
लेकिन वास्तव में मच्छर की वाणी नहीं कभी गाती
केवल पंखों के कंपन के कारण ध्वनि प्रकटित होती
मच्छर गाते फिरते रहते, उड़ते रहते चारो ओर
निरुपद्रवी नहीं हैं लेकिन, बड़ा भयानक इनका जोर
रक्त हमारा इनको प्यारा रहते सदा रक्त अनुरक्त
कितना भी हम इन्हें भगायें, पर ये हम पर अति आसक्त
ऐसा इनका अटूट ही है हमसे बना गाढ़ सम्बन्ध
लेकर खून रोग देते हैं यह मच्छर-नर का अनुबन्ध
मलेरिया परजीवी नामक जीवाणु के बने वाहक
रोग मूल का कारण वे हैं, इन्हें कोसते हम नाहक
ये तो बस परिचय करवाते इन पर क्या करना है रोष
मलेरिया यदि हुआ हमें तो इसमें मच्छर का क्या दोष
लेकिन हम मच्छर मारें तो मलेरिया से बच सकते
गाड़ी ही यदि नहीं मिले तो यात्री कैसे जा सकते
मच्छर की न जातियाँ सारी मलेरिया फैलाती हैं
एनाफिलीज भाभीजी केवल यह सुकार्य कर पाती हैं
एडीज एक और मच्छर है जो है डेंगू का कारण
अतः मच्छरों का हमसे है चलता ही रहता नित रण
स्थिर जल में मच्छर बढ़ते हैं, पानी रखो सदा बहता
चारों तरफ स्वच्छता रखना सदा स्वास्थ्यदायी रहता
मच्छरमार दवाएँ कितनी आविष्कृत की हैं हमने
और रसायन भी, किरणें भी, उनको दूर सदा रखने
लेकिन स्पर्धा चलती रहती, उन सबको भी धता बता
नयी जातियाँ अब उपजी हैं जिनका अब है लगा पता
चलता रहता यही निरंतर मानव मच्छर का संघर्ष
उससे ही होता जाता है विज्ञान ज्ञान का सब उत्कर्ष
केवल गहन अध्ययन ही है खुला हमारे सम्मुख पथ
मच्छर सदा चलाता रहता मानव की उन्नति का रथ
आठ करोड़ वर्ष पहले ये कीट हुए भू पर विकसित
उनके भी पूर्वज मिलते हैं दबे शिलाओं में परिरक्षित
जीवों के विकास की यात्रा जानें समझें अति रोचक
प्रकृति नाट्य की रम्य कथा यह उतनी ही विस्मयकारक

लेखक का परिचय
नाम: मुकुन्द नीलकण्ठ जोशी
जन्म: 13 जुलाई, 1948 ( वास्तविक ), 1947 ( प्रमाणपत्रीय ), वाराणसी
शिक्षा: एम.एससी., भूविज्ञान (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय), पीएचडी. (हे.न.ब.गढ़वाल विश्वविद्यालय)
व्यावसायिक कार्य: डी.बी.एस. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, देहरादून में भूविज्ञान अध्यापन
रुचि:
- विज्ञान शोध एवं लेखन
25 शोध पत्र प्रकाशित
एक पुस्तक “मैग्नेसाइट: एक भूवैज्ञानिक अध्ययन” प्रकाशित - लोकप्रिय विज्ञान लेखन
एक पुस्तक “समय की शिला पर” (भूविज्ञान आधारित ललित निबन्ध संग्रह) तथा एक विज्ञान कविता संग्रह “विज्ञान रस सीकर” प्रकाशित
अनेक लोकप्रिय विज्ञान लेख प्रकाशित, सम्पादक “विज्ञान परिचर्चा” ( उत्तराखण्ड से प्रकाशित लोकप्रिय विज्ञान पत्रिका ) - हिन्दी साहित्य
प्रकाशित पुस्तकें - युगमानव (श्रीकृष्ण के जीवन पर आधारित खण्डकाव्य)
- गीत शिवाजी (छत्रपति शिवाजी के जीवन पर गीत संग्रह)
- साहित्य रथी ( भारतीय साहित्यकार परिचय लेख संग्रह )
- हिन्दी नीतिशतक (भर्तृहरिकृत “नीतिशतकम्” का हिन्दी समवृत्त भावानुवाद)
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएँ प्रकाशित
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।