स्कूल में गुरुजी ने अपनी जेब से लगा दिए साढ़े चार लाख रुपये, हर छात्र के नाम का है एक पेड़, खड़ा किया जंगल और बनाया तालाब
यदि गुरु खुद ही छात्रों के जीवन में सुधार के साथ ही आसपास के ग्रामीणों के जीवन स्तर को बदलने में जुट जाए तो उस गांव के साथ ही दूसरे गांवों का कल्याण भी निश्चित हैं। यहां हम ऐसे ही गुरुजी की कहानी बता रहे हैं, जो बच्चों और स्कूल के विकास के साथ ही आसपास के लोगों के विकास में जुटे हैं। गुरुजी ने स्कूल के विकास में अपनी जेब से करीब साढ़े चार लाख रुपये तक खर्च कर डाले। उनकी मेहनत रंग लाई और स्कूल में फलदार वृक्षों का बगीचा खड़ा है। स्कूल की भूमि में बनाए गए तालाब में छह सौ मछलियां मचलती हुई नजर आएंगी। घोसलों में परिंदों का कलरव, फूलों से पराग चुनकर छतों में शहद एकत्र करती हुई मधुमक्खियां। ये सब तो इन गुरु की देन है। उनके बारे में लिखने से पहले हम तो यही कहेंगे की ऐसी महान विभूति को सबसे पहले प्रणाम कर लिया जाए।
गुरुजी का परिचय
यहां बात हो रही है उत्तराखंड में रुद्रप्रयाग जनपद के विकासखंड अगस्त्यमुनि के अंतर्गत राजकीय प्राथमिक विद्यालय कोट तत्ला विद्यालय में शिक्षक सत्येंद्र भंडारी की। जिन्हें अब पर्यावरण मित्र के नाम से जाना जाता है। रुद्रप्रयाग जिले के गांव कोटगी भटवाड़ी गांव में सत्येंद्र भंडारी का जन्म 11 जून 1971 को हुआ। उनके पिता स्व. मोहन सिंह भंडारी गांव के साधारण परिवार से थे। छह भाई बहनों में सत्येंद्र दूसरे नंबर पर हैं। उनकी प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा गांव में ही हुई।
विद्यालय की दुर्दशा को देख मिली कुछ करने की प्रेरणा
सत्येंद्र भंडारी के मुताबिक पहले उन्होंने एक हजार रुपये मासिक में निजी स्कूल में शिक्षण कार्य किया। इसके बाद उनकी वर्ष 2009 में सरकारी नौकरी लगी। पहली ज्वाइनिंग 14 जनवरी 2009 को कोट तल्ला स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय से हुई। यहां विद्यालय की हालत उन्होंने देखी तो बड़ा दुख हुआ। इस पर उन्होंने विद्यालय प्रबंध समिति, स्कूल के प्रधानाचार्य, जिलाधिकारी, एसडीएम आदि से विद्यालय की दशा बदलने के लिए कुछ नया करने की गुहार लगाई। साथ ही लोगों को स्कूल व आसपास की दशा सुधारने के लिए प्रेरित किया। वह बताते हैं कि तब स्कूल में 17 विद्यार्थी थे। जिनकी संख्या बढ़कर अब 32 हो गई है।
स्कूल के लिए खरीदी करीब आठ नाली जमीन
सत्येंद्र भंडारी के मुताबिक स्कूल में पौधरोपण के लिए ज्यादा जगह नहीं थी। इस पर उन्होंने करीब आठ नाली जमीन खरीदी। साथ ही स्कूल में पौध की नर्सरी तैयार की। इसके अलावा स्कूल में तालाब भी तैयार किया। मत्स्य पालन विभाग के सहयोग से मछलियां भी इसमें डाली गई। स्कूल में किए गए सुधारों में वह अब तक करीब साढ़े चार लाख रुपये अपनी जेब से खर्च कर चुके हैं।
हर छात्र के नाम पर रोपा जाता है एक पौधा
विद्यालय की जमीन पर एक साल पौधरोपण के सीजन में जुलाई से अगस्त माह तक हर नए छात्र के नाम पर एक पौधा रोपा जाता है। ऐसे करीब 176 पौधे विद्यालय के आसपास लगाए गए हैं। जो कि अब फल देने लगे हैं। इसी तरह वह ग्रामीणों को भी पौध उपलब्ध कराते हैं। विद्यालय के आसपास वे करीब पांच हजार पौध से जंगल खड़ा कर चुके हैं।
विद्यालय की नर्सरी में हैं 20 हजार पौध
विद्यालय में छात्रों, क्षिक्षकों और ग्रामीणों के सहयोग से नर्सरी तैयारी की गई है। इसमें इस वक्त भी 20 हजार पौध हैं। इसके अलावा 11 हजार और पौध तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है। सत्येंद्र भंडारी के मुताबिक विद्यालय की नर्सरी में अब तक तैयार की गई पौधों से 71 हजार पौधों का रोपण किया जा चुका है। नमामि गंगे या फिर जल संरक्षण परियोजना के लिए भी उन्होंने पौध उपलब्ध कराई।
ये भी किए काम
स्कूल में मछली तालाब में इस वक्त करीब 600 से लेकर 700 मछलियां हैं। मछली पालन शुरू हुए ज्यादा वक्त नहीं हुआ है। फिर भी इससे करीब 1200 रुपये की कमाई हुई। इसे विद्यालय के कार्यों में खर्च किया गया। इसी तरह मधुमक्खी पालन का भी प्रयोग किया गया। इसका एक बॉक्स लगाया गया है। साथ ही सात घोसले तैयार किए गए। इसमें भी पक्षी आने लगे हैं। सत्येंद्र भंडारी के मुताबिक वह ऐसे कार्यों से ग्रामीणों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित करने में जुटे हैं।
तरुश्री पुरस्कार से होंगे सम्मानित
पर्यावरण मित्र सत्येंद्र भंडारी को शिक्षा के साथ ही पर्यावरण संरक्षण व संवर्द्धन के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने तरुश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। यह पुरस्कार प्रदेश सरकार की ओर से दिया जाता है। इसके लिए शिक्षा निदेशालय पात्र का चयन करता है। फिलहाल पुरस्कार देने की तिथि तय नहीं है।
17 दिसंबर को दिल्ली में होंगे सम्मानित
केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक 17 दिसंबर को दिल्ली में एक समारोह में सत्येंद्र भंडारी को सम्मानित करेंगे। इस समारोह के लिए गढ़वाल और कुमाऊं के 13 जिलों से पांच शिक्षकों का पुरस्कार के लिए चयन किया गया है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।