शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता-जिंदगी वतन के नाम
क्या है इंसान बता तेरी ये जिंदगानी,
जो काम ना आए वतन के।
मौके तो बहुत हैं जिंदगी जीने के,
पर जान कैसे न्योछावर हो वतन के।।
वतन जूझ रहा जिस संकट में आज,
ऐसा कुछ कर जिंदगी काम आए वतन के।
अपने लिए तो बहुत जी लिए हम,
अब जान,नाम कर दे वतन के।।
महामारियां तो पहले भी झेली वतन ने,
तब भी काम आए थे,तुम वतन के।
बस घर पर ठहर, एहसान कर,
समझेंगे तुम काम आए, वतन के।।
बस जिद में अपनी जान न गंवा यूं,
जिंदगी पर कई एहसान वतन के।
फिर किस काम की तेरी ये जिंदगी,
जो दुःख में काम न आए वतन के।।
मांग रहा आज बलिदान वतन तुझसे,
तोडता क्यों तू नियम वतन के।
याद रखेगा वतन तेरी कुर्बानी ,
कुछ काम तो आए,तुम वतन के।।
सोच कोरोना का कहर तुझ पर ही क्यों,
परिंदों,छोटे जीवो पर क्यों नहीं वतन के।
क्योंकि भूल करने में तू ही माहिर,
तभी तो शत्रु पीछे पड़ा वतन के।।
वक्त रहते संभल जरा ए इंसान,
कई अपनों की जिंदगियां वतन में।
बेवजह मत पार कर दहलीज अपनी,
इक छोटी कोशिश,नाम तेरे वतन के।।
मास्क दूरी सफाई नियम निभा,
तभी तो शत्रु जाएगा वतन से।
बस एक बार कहना तो मान ले,
जिद छोड़ अपनी नियम निभा वतन के।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।