लाचार च त्यारू गौं भुलाओ उत्तराखण्ड का, धारा-पन्यारा बिसिकि गीं। धुर्पली का पाथर रैडिकि, ज़मीन म खिसिकि गीं। ल्यो देखो...
साहित्य
धुएं की चादर ओढ़े शहर पड़ा। शहर की तबीयत ठीक नहीं है। सेहतमंद में शरीक़ नहीं है। प्रदूषण सूचकांक आसमां...
राम को अपना धाम खोजने की क्या पड़ी जरूरत है। राम तो घट-घट के वासी हैं हर तन में उनकी...
ज़िन्दगी की धूप में मिला न कोई साया। तपते रहे दुपहर में खपरैलों की तरह। उधड़ते रहे फफोले थिगड़ैलों की...
रहते हैं हम डरे - डरे से। ज़िंदा रहकर मरे - मरे से। हरे - भरे थे जो खेत कभी...
हम कहें, तुम सुनो; तुम कहो, हम सुनें आओ! बैठो बातों का स्वेटर बुने। उम्र का छौना भागा जा रहा...
एक - एक वोट को आसमां से गिर वे, खजूर में अटक रहे हैं। एक - एक वोट को जो,...
देख तमाशा हँसता है सच खाना-दाना ढूँढ रहा सच, कलयुग की खलिहानों पर। देख तमाशा हँसता है सच, दो दिन...
घर के बिना झूठ हमसे कहा नहीं जाता। सत्य उनसे सहा नहीं जाता। भले हमारे ख़िलाफ़ हो हवा उसके संग...
हमने बीने पत्तल जंगल के राहों में कोई मारा पत्थर बीच बीच बाजारों में चूल्हे के अंगीठियों में हमने झोंके...