सूखे पत्ते कहते हैं सूखे पत्ते कहते हैं, सूख गया सो झड़ गया, अपनो से बिछड़ गया, पतझड़ के मौसम...
कविता
कद्र उसी की है जग में, जिसके मुंह पर खुशबू हो ! देवभूमि का रहने वाला हूं ! कभी पक्षपात...
बदला क्या है? बदला क्या है? कुछ भी तो नही! वही फीके चेहरे, वही तीखे तेवर, वही दिखावटी रिश्ते, वही...
फागुनी बयार आ गई है ऋतु सुहानी, वसंती बयार लेकर। फागुनी कोमल पवन वह, हाथ फेरे सिर पे सर सर।...
हिन्दी राष्ट्रवाद के हर पन्ने पर, हिन्दी का साम्राज्य हो । भटक रही पहचान हमारी, उठो उसका सम्मान हो ।।...
तपोवन की व्यथा जिन बर्फ की चोटियों का दीदार करने, सैलानी आते थे यहाँ सैर करने। डर रहे हैं काँप...
क्यों राष्ट्र के भक्षक-रक्षक से पराक्रम का प्रमाण माँगते हैं, संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की सारी सीमायें लाँघते हैं।। जला रहे...
अगर कभी-भी नहीं मिले तो अगर कभी कुछ कहा नहीं तो - बात कैसे है ? अगर कभी कुछ सुना...
कह रहा हिमालय अब भी समय है कह रहा हिमालय अब भी समय है, जागो - जागो देर न हो...
देख तबाही के मंजर को, व्यथित हृदय क्यों टूट रहा ! धरती माता की चीखों से, नील नलय तक सिहर...