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September 28, 2024

सुप्रीम कोर्ट सख्त, हेट स्पीच पर हिमाचल सरकार पर सवाल, रुड़की में हेट स्पीच नहीं रोकी तो मुख्य सचिव होंगे जिम्मेदार, सांप्रदायिक हिंसा की जांच की याचिका खारिज

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हिमाचल प्रदेश में धर्म संसद में हेट स्पीक के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया। साथ ही राज्य सरकार की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए।

हिमाचल प्रदेश में धर्म संसद में हेट स्पीक के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया। साथ ही राज्य सरकार की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए। वहीं, रामनवमी और हनुमान जंयती के अवसर पर दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात में हुई सांप्रदायिक हिंसा की न्यायिक जांच और बुलडोजर न्याय के खिलाफ दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। वहीं, उत्तराखंड के रुड़की में बुधवार 27 अप्रैल को होने वाली धर्म संसद पर सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हेट स्पीच को रोका नहीं गया तो मुख्य सचिव को जिम्मेदार ठहराएंगे। हम मुख्य सचिव को अदालत में तलब करेंगे। हेट स्पीच को लेकर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन हो . हेट स्पीच को रोकने के लिए जरूरी सभी कदम उठाए जाएं।
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव को हालात को रिकॉर्ड में रखने और आवश्यकता पड़ने पर अधिकारियों द्वारा किए गए सुधारात्मक उपायों पर हलफनामा दाखिल करने के आदेश दिए गए हैं। जस्टिस ए एम खानविलकर ने कहा कि सरकार भरोसा तो दे रही है, लेकिन जमीन पर ऐसा दिखाई नहीं दे रहा। सुनवाई के दौरान सिब्बल ने बुधवार को रुड़की में होने वाली धर्म संसद पर रोक की मांग की। उत्तराखंड के वकील ने कहा कि हम निवारक कदम उठा रहे हैं। जिस समुदाय का सिब्बल समर्थन कर रहे हैं, वो भी कुछ चीजे कर रहा है। जस्टिस खानविलकर ने सरकार के वकील को रोका और कहा। ये कैसी दलीलें हैं? यह अदालत में बहस करने का तरीका नहीं है।
हिमाचल धर्म संसद में हेट स्पीच के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की ओर से की गई अब तक की कार्रवाई पर भी सवाल खड़ा किया है। अदालत ने कहा कि सरकार को ऐसी गतिविधि को रोकना होगा। राज्य सरकार को बताना होगा कि क्या कोई निवारक कदम उठाया गया है या नहीं? कोर्ट ने कहा कि सरकार हलफनामा दाखिल कर बताए कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट की तरफ से सरकार को हलफनामा के लिए 7 मई तक का समय दिया है। अदालत ने कहा कि ये घटनाएं अचानक नहीं होतीं, ये रातों-रात नहीं होती, इनकी घोषणा पहले से की जाती है, आपने तुरंत कदम नहीं उठाया? पहले से ही सुप्रीम कोर्ट की इस मुद्दे पर गाइडलाइन मौजूद है। इस मुद्दे पर अगली सुनवाई अब 9 मई को होगी। याचिकाकर्ता की तरफ से कपिल सिब्बल ने कहा कि कुछ नेताओं ने हेट स्पीच का इस्तेमाल किया। कलेक्टर और एसपी ने कुछ नहीं किया। जो कुछ कहा गया था, मैं यहां ज़ोर से नहीं पढ़ना चाहता। आप इसे पढ़ सकते हैं। सरकार की तरफ से अदालत में कहा गया कि इसे लेकर कदम उठाए जा रहे हैं, धर्म संसद खत्म हो चुकी है।
बताते चलें कि पत्रकार कुरबान अली और पटना हाईकोर्ट की पूर्व जज अंजना प्रकाश ने की तरफ से दायर याचिका में हिमाचल प्रदेश में 17 अप्रैल को हुई धर्म संसद में हेट स्पीच खिलाफ अर्जी दी गयी थी। अर्जी में कहा गया है कि ये 2018 में सुप्रीम कोर्ट के हेट स्पीच को लेकर जारी गाइडलाइन के खिलाफ है।
हिमाचल प्रदेश के ऊना में उगला था जहर
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के डासना मंदिर के मुख्य पुजारी यति नरसिंहानंद के जहर वाले भाषण लगातार जारी हैं। पुलिस की कार्रवाई का शायद ही कोई असर दिख रहा है। नरसिंहानंद ने हिमाचल के ऊना में मुस्लिमों के खिलाफ जहर उगला था। हरिद्वार हेट स्पीच मामले में अखिल भारतीय संत परिषद के हिमाचल प्रदेश के प्रभारी यति नरसिंहानंद जमानत पर रिहा हैं। उन्होंने हिमाचल प्रदेश के ऊना में एक ‘धार्मिक’ सम्मेलन में अपनी जमानत की शर्तों का उल्लंघन करते हुए एक नफरती बयान दिया था। बैठक में आयोजकों ने हिंदुओं से हथियार उठाने का खुला आह्वान किया और अन्य वक्ताओं ने मुसलमानों की हत्याओं का आह्वान भी किया। बैठक के आयोजकों में से एक, सत्यदेव सरस्वती का कहना है कि यह एक निजी कार्यक्रम था और यहां प्रशासन से अनुमति लेने की कोई जरूरत नहीं है।
इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए नरसिंहानंद ने कहा था कि वर्तमान समय में हिन्दू समाज पतन की ओर बढ़ रहा है। पहले सिर्फ अमरनाथ यात्रा और वैष्णो देवी की यात्रा पर पथराव होता था। अब राम नवमी, हनुमान जयंती किसी भी हिन्दू पर्व पर पथराव होने लगा है। इससे ज्यादा हिन्दुओं के लिए बुरा क्या होगा। आगे उन्होंने कहा कि देश की राजनीतिक व्यवस्था मुसलमानों के प्रति झुकाव रखती है। यही कारण है कि हिन्दुओं के साथ बुरा व्यवहार हो रहा है। हिन्दुओं को ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करके उन्हें बलशाली बनाना चाहिए। ताकि वो अपने परिवार की रक्षा कर सकें।
वहीं इस मीटिंग के आयोजकों में से एक सत्यदेव सरस्वती ने कहा था कि यह एक निजी कार्यक्रम है। उन्होंने प्रशासन को लेकर कहा कि हम कानून में विश्वास नहीं करते। हम किसी से नहीं डरते। यहां हम सच कह रहे हैं। भड़काऊ भाषण नहीं दे रहे। ऊना में, साध्वी अन्नपूर्णा सहित कई उपस्थित लोगों ने भड़काउ भाषण दिया। साध्वी अन्नपूर्णा हरिद्वार मामले में भी मुसलमानों के खिलाफ जहर उगलने के लिए पुलिस कार्रवाई का सामना कर रही हैं। अन्य लोगों के साथ साध्वी पर धार्मिक समुदायों के बीच दुश्मनी बढ़ाने और पूजा स्थल को अपवित्र करने का आरोप लगाया गया था। जनवरी में हरिद्वार में एक कार्यक्रम आयोजित करने के लिए यति नरसिंहानंद को गिरफ्तार किया गया था। इस कार्यक्रम में मुसलमानों के नरसंहार का आह्वान किया गया था। यति नरसिंहानंद को 18 फरवरी को जमानत पर रिहा कर दिया गया था। सूत्रों ने बताया, उनकी जमानत शर्तों में से एक यह भी है कि वह ऐसे आयोजनों में भाग नहीं ले सकते।
दिल्ली में भी दिया था भड़काऊ भाषण
हालांकि, इस महीने की शुरुआत में भी यति नरसिंहानंद ने दिल्ली के बुराड़ी में मुसलमानों के खिलाफ हथियारों के इस्तेमाल के आह्वान करते हुए नफरती भाषण दिया था। पुलिस ने यति नरसिंहानंद का नाम लेते हुए एक एफआईआर दर्ज की थी, जिन्होंने कहा था कि उन्होंने कार्यक्रम की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। आयोजक ने फिर भी “महापंचायत सभा” का आयोजन किया और उसमें करीब 700-800 लोग शामिल हुए।
सांप्रदायिक हिंसा की न्यायिक जांच की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार
उधर, रामनवमी और हनुमान जंयती के अवसर पर दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात में हुई सांप्रदायिक हिंसा की न्यायिक जांच और बुलडोजर न्याय के खिलाफ दायर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। अदालत ने याचिकाकर्ता एडवोकेट विशाल तिवारी से कहा कि ऐसी मांग मत कीजिए, जिसे पूरा न किया जा सके। जस्टिस नागेश्वर राव ने कहा कि आपने मांगा है कि पूर्व सीजेआइ की अगुवाई में जांच कराई जाए। क्या कोई खाली बैठा है?
गौरतलब है कि एडवोकेट विशाल तिवारी ने एक जनहित याचिका दायर कर रामनवमी और हनुमान जंयती के अवसर पर राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश और गुजरात में हुई धार्मिक झड़पों की जांच के लिए भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में न्यायिक जांच आयोग गठित करने का निर्देश देने की मांग की थी।
याचिकाकर्ता ने मध्य प्रदेश, गुजरात और उत्तर प्रदेश में “बुलडोजर न्याय” की मनमानी कार्रवाई की जांच के लिए भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता के तहत एक न्यायिक जांच आयोग के गठन के लिए निर्देश देने की भी मांग की थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि इस तरह के कार्य पूरी तरह से भेदभावपूर्ण हैं और लोकतंत्र और कानून के शासन की धारणा में फिट नहीं होते हैं। ऐसे व्यक्तियों से संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत जीवन और समानता के अधिकार के तहत उल्लंघन किया जाता है।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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