वरिष्ठ पत्रकार दिनेश कुकरेती की कहानी-गूगल पे

मनीष ने दरवाजा खोला तो सामने नीतू खडी़ थी। नीतू पति के साथ उसी मकान के एक कमरे में किराये पर रहती है, जिसमें मनीष भी किरायेदार है। पति मेहनत-मजूरी करता है और नीतू स्वयं दो-तीन घरों में किचन का काम। उम्र 27-28 साल से ज्यादा नहीं होगी। दो छोटे-छोटे बच्चे भी हैं नीतू के, लेकिन उसका चुलबुलापन इसका एहसास ही नहीं होने देता।
मनीष ने नीतू पर दृष्टि डाली तो वह सिर झुकाए याचक की-सी मुद्रा में बोली- ‘पैसे भिजवाने थे अपने घर समस्तीपुर। ससुर की तबीयत खराब है। आप गूगल पे कर दोगे क्या?’ उसकी मुट्ठी में दो-तीन मुडे़-तुडे़ नोट नजर आ रहे थे। (कहानी जारी, अगले पैरे में देखिए)
‘किसे करना है गूगल पे?’ – मनीष ने पूछा
‘समस्तीपुर में हमारे घर के पास ही रहता है वह। नाम तो मुझे मालूम नहीं’- नीतू ने कहा।
मनीष ने नीतू से उसका नंबर लेकर गूगल पे एप में फीड किया तो उसमें राजीव कुमार नाम शो हो रहा था।
‘क्या राजीव कुमार है उसका नाम?’ – मनीष ने पूछा
‘पता करती हूं’, यह कहते हुए नीतू ने घर पर फोन लगाया तो दूसरी ओर से उसके देवर ने पड़ोसी का नाम राजीव कुमार होने की बात स्वीकारी।
‘…तो पैसे सीधे घर क्यों नहीं भेज रही हो?’ – मनीष ने कहा (कहानी जारी, अगले पैरे में देखिए)
‘घर में छोटा फोन है, खाली बात करने के लिए। उससे गूगल पे नहीं होता। इसलिए इस आदमी को पैसे भेजने पड़ते हैं। ससुर के लिए दवाइयां लानी हैं। तबीयत ज्यादा खराब है। लेकिन, कह रहे थे कि पैसे नहीं हैं उनके पास। मुझसे पैसे भेजने को कहा है। अब उनसे कैसे कहूं कि पैसे तो मेरे पास भी नहीं हैं। दो-तीन घरों में काम करके तो जैसे-तैसे महीने की गाड़ी चल पाती है।’ – नीतू बोली
‘…तो क्या ये आदमी दे देगा उन्हें पैसे। कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं करेगा?- मनीष ने आशंका जताते हुए पूछा
‘तभी तो 1550 रुपये भिजवा रही हूं। इसमें से 50 रुपये वो रख लेगा और बाकी मेरे ससुर को देगा। वो सबसे ऐसे ही लेता है।’ – नीतू ने बताया
‘क्या…? गूगल पे के भी पैसे लेता है वो’, मनीष ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा
‘नहीं। हमारे यहां पैसे वाले लोग गरीबों से ऐसे ही तकाजा वसूलते हैं। ये तो फिर भी 50 रुपये ही ले रहा है। कई तो सौ-डेढ़ सौ भी ले लेते हैं।’ – नीतू बोली (कहानी जारी, अगले पैरे में देखिए)
मनीष हतप्रभ था। फिर उसने चुपचाप नीतू के 1550 रुपये गूगल पे से ट्रांसफर कर दिए। नीतू ने भी मुट्ठी में बंद रुपये मनीष के हाथ में थमा दिए।
इसके बाद भी नीतू ने दो बार फिर मनीष से गूगल पे के जरिये पैसे भिजवाए, 50-50 रुपये कर समेत। मनीष हर बार गूगल पे तो कर देता है, लेकिन उसके बाद कई दिन व्यथित रहता है। नीतू की विवशता और समाज के इस संवेदनहीन बर्ताव को देखकर। कैसे लोग हैं वो, जो दूसरे की विवशता का फायदा उठाने में जरा-भी नहीं हिचकते। मैं स्वयं मनीष की जुबानी नीतू की दास्तान सुनकर व्यथित हूं, लेकिन सिवाय अफसोस व्यक्त करने के, कुछ नहीं कर सकता।
लेखक का परिचय
दिनेश कुकरेती उत्तराखंड में वरिष्ठ पत्रकार हैं। वह प्रिंट मीडिया दैनिक जागरण से जुड़े हैं। वर्तमान में देहरादून में निवासरत हैं। साथ ही उत्तरांचल प्रेस क्लब में पदाधिकारी भी हैं।

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।