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December 13, 2024

शार्टकट के तरीके भी हैं अजीब, कभी कभी बन जाते हैं मुसीबत की जड़, पढ़िए रोचक किस्से

बुजुर्ग लोग सही फरमाते हैं कि जो रास्ता पहले से नहीं देखा, उस पर नहीं चलना चाहिए। कई बार शार्टकट के लिए अपनाए जाने वाले रास्ते ही मुसीबत बन जाते हैं। फिर सवाल यह उठता है कि जब तक नया रास्ता नहीं देखेंगे तो उसके बारे में हमें क्या पता चलेगा।

बुजुर्ग लोग सही फरमाते हैं कि जो रास्ता पहले से नहीं देखा, उस पर नहीं चलना चाहिए। कई बार शार्टकट के लिए अपनाए जाने वाले रास्ते ही मुसीबत बन जाते हैं। फिर सवाल यह उठता है कि जब तक नया रास्ता नहीं देखेंगे तो उसके बारे में हमें क्या पता चलेगा। वो व्यक्ति ही क्या जो प्रयोगवादी न हो। प्रयोग करने से ही सही व गलत का पता चलता है। प्रयोग जरूर करें, लेकिन समय व परिस्थिति के अनुरूप। साथ ही यह ध्यान भी रखना जरूरी है कि हमारा प्रयोग कितना व्यवहारवादी साबित होगा।
वैसे तो प्रयोग ही आविष्कार की जननी है। बचपन में मुझे अन्य बच्चों से हटकर कुछ नया करने का बड़ा शौक था। मैं हर उपकरण, खिलौने व मशीन को काफी बारीकी से देखता और यह जानने की कोशिश करता कि यह कैसे काम कर रहा है। इसी उधेड़बुन में खिलौना मिलते ही कुछ देर खेलता, फिर चुपके से उसका आपरेशन करता। ताकी पता चल सके कि ये कैसे चलता है। जमीन में रगड़ने के बाद चलने वाली कार और बस का आपरेशन करने के बाद उसे दोबारा से जोड़ तो नहीं पाता, लेकिन उसके भीतर एक चकरी जरूर निकाल लिया करता था। जो मैं फिर लट्टू की तरह घुमाता था।
तब मैं जूते की पॉलिश की खाली डब्बी, पुराने सेल (बेटरी), खराब टार्च समेत काफी कबाड़ एकत्रित करके रखता। एक बार मैने डालडे (घी) के दो डब्बों को तारकोल से ट्रेननुमा जोड़कर उसमें पॉलिस की डब्बी के पहिये बनाए। आगे वाले डब्बे को आधा पानी से भरा और पीछे वाले में कबाड़ डालकर आग जलाने की कोशिश। मेरी कल्पना थी कि जब अगले डिब्बे का पानी खोलेगा, तो भाप बनकर निकलेगा। इस भाप का करनेक्शन पहियों के पास किया गया। ताकि तेजी से निकली हवा से वे घुमेंगे। हाय रे बचपन का दिमाग। डिब्बे के गर्म होने पर सारे तारकोल के जोड़ खुल गए। मेरी कल्पना की ट्रेन दो टुकड़ों में बिखर गई।
आविष्कार यहां भी खत्म नहीं हुए। खराब सेल को दोबारा रिचार्ज करने के लिए एक दिन मैं सेल को पानी में उबाल रहा था। चूल्हे की आंच धीमी हुई तो मैं पांच लीटर के जेरीकन से चूल्हे में डीजल डालने लगा। तभी धमाका हु्आ और मेरे हाथ से जेरीकन छूट गया। मुझे लगा कि मेरा हाथ टूट गया। मुझे गर्मी का अहसास होने लगा। तभी नजर गई तो देखा कि मेरी पेंट दोनों जांघ के पास से धूं-धूं कर जल रही है। पैंट का कपड़ा खादी का था, जिसे आजकल जींस भी कहा जाता है। यानी की मोटा सूती कपड़ा। ऐसे में कपड़ा शरीर के चिपका नहीं। मैं इधर-उधर भागा तो लपटें और तेज हो गई जो सिर तक पहुंच रही थी। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मेरी मौत सामने खड़ी थी।
तभी मुझे पानी के नल के नीचे एक आधा भरा बड़ा ड्रम नजर आया। मैं किसी तरह उसमें घुसा तब जाकर आग बुझी। यहां यह बताना चाहूंगा कि जब जेरीकन धमाके से फटा तो उसका ऊपरी हिस्सा चिर गया। पकड़ हल्की होने के कारण यह मेरे हाथ से छिटका, लेकिन सीधा ही जमीन पर गिरा। कुछ डीजल जो मेरी पेंट में गिरा आग से वही जलने लगा था। जब तक आग तेज होती, मैंने उसे बुझा दिया। यह खौफ मुझे कई साल तक कचौटता रहा।
लड़कपन में भी मेरे प्रयोग बंद नहीं हुए। बारबर (नाई) की दुकान में हेयर ड्रायर आया तो मुझे भी बाल सेट करना का शौक चढ़ा। तब दो रुपये में बालों में ड्रायर लग जाता था। गर्म हवा को बालों के संपर्क में लाने पर बालों को कभी भी घुमाया जा सकता है। यह पता चलते ही मैने प्रेशर कूकर की भाप से बालों को सेट करने की विधि निकाली और दो रुपये बचाए। जब भी चावल पकते और सीटी आती तो मैं कंघी लेकर कूकर से सट जाता। भाप का संपर्क बालों से कर उन्हें सेट करने का प्रयास करता। एक दिन कूकर की सीटी नहीं बजी। सेफ्टीवाल भी मजबूत निकला। नतीजन कूकर का ढक्कन ही उड़ गया। वह छत से टकराकर नीचे गिरा। छत पर चावल चिपक गए। क्रिया की प्रतिक्रया के स्वरूप जितनी तेजी से ढक्कन ऊपर गया उतना ही बल कूकर से नीचे की तरफ लगा। इससे गैस का चूल्हा पिचक गया। जिस टेबल में गैस का चूल्हा रखा था वह भी क्रेक हो गई। यहां मेरी किस्मत ने साथ दिया कि मुझे कुछ नहीं हुआ।
अमर उजाला में मुझे सहारनपुर में नौकरी के दौरान मेरठ बुलाया गया। वहां मुझे नया स्कूटर खरीद कर दिया गया। मैं मेरठ से सहारनपुर स्कूटर से आ रहा था। देववंद के पास मैने सहारनपुर के लिए एक ग्रामीण से रास्ता पूछा। वह भी शार्टकट रास्ता बता गया। रास्ते मे एक बरसाती नदी से होकर गुजरना था। नदी में पानी नहीं था, लेकिन रेत में फिसलन थी। बीच नदी में मेरा स्कूटर धंस गया। रात का समय था, ऐसे में उस बीराने में कोई मददगार तक नहीं मिला। मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था। किसी तरह पैदल उतरकर मैं पूरी ताकत से स्कूटर को आगे सरका रहा था। करीब आधे घंटे में मैं स्कूटर को किनारे पहुंचाने में कामयाब हुआ।
इसके कुछ दिन बाद एक दिन रेलवे क्रासिंग पर गेट बंद था। मेरे साथी ने कहा कि बगल से शार्टकट है। आगे पटरियां हैं। वहां से रास्ता पार कर लेंगे। मैं भी शार्टकट अपनाते हुए चल दिया। पटरी एक नहीं करीब सात-आठ थी। उन्हें पार करने में दोनों को पापड़ बेलने पड़ गए। स्कूटर के पहियें पटरी पर फंस रहे थे। साथी ईंट लगाता तब हम पटरी पर चढ़ाकर आगे बढ़ते। गनीमत थी कि इस बीच कोई ट्रेन नहीं आई। मैने साथी को पहले ही कह दिया था कि यदि दूर से ट्रेन दिखी तो स्कूटर छोड़कर सुरक्षित स्थान पर खड़े हो जाएंगे।
वैसे शार्टकट के फायदे कम, नुकसान ज्यादा हैं। छोटे लालच में हम बड़ा नुकसान कर बैठते हैं। व्यक्ति के जीवन में शार्टकट के मौके अक्सर मिलते हैं। नौकरी पाने के लिए रिश्वत का शार्टकट, किसी लाइन में खड़े होने से पहले जान पहचान या रुतबे का फायदा उठाकर लिया गया शार्टकट, सड़क पार करने के लिए चौराहे तक पहुंचे बगैर डिवाइडर से निकलने का शार्टकट, पैसे कमाने के लिए अपनाया गया शार्टकट। ऐसे शार्टकट से फायदे की उम्मीद काफी कम होती है। शार्टकट से पैसे कमाने वाले अक्सर जेल की सलाखों में रहते हैं। एक मित्र का कहना था है उसी रास्ते से जाओ जहां से सभी जाते हैं और वह सुरक्षित हो। चाहे वह कुछ लंबा जरूर हो। प्रयोग जरूर करो, लेकिन पहले उसके हर पहलू पर विचार भी करो। तभी मंजिल आसान होगी।
भानु बंगवाल

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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