Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

December 21, 2024

वरिष्ठ साहित्यकार पंकज बिष्ट विद्यासागर नौटियाल स्मृति सम्मान से सम्मानित, जानिए विद्यासागर नौटियाल के बारे मे

वरिष्ठ साहित्यकार पंकज बिष्ट को आज रविवार 29 सितंबर को विद्यासागर नौटियाल स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया। देहरादून स्थित उत्तरांचल प्रेस क्लब सभागार में ये सम्मान समारोह आयोजित किया गया। यह कार्यक्रम सेव हिमालय मूवमेंट व संवेदना संस्था की ओर से आयोजित किया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सम्मान पाने वाले वरिष्ठ कथाकार, विचारक पंकज बिष्ट ने कहा कि प्रतिबद्धता क्या होती है यह मैने विद्यासागर नौटियाल से सीखा। विद्यासागर नौटियाल ने अपनी राजनीतिक साहित्यिक प्रतिबद्धता कभी छिपाई नहीं। उन्होंने कहा कि मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता मनुष्यता की सबसे बड़ी थाती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उत्तरांचल प्रेस क्लब में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि व पत्रकार इब्बार रब्बी ने कहा कि वह पंकज बिष्ट को बहुत पहले से जानते हैं। वे हमेशा से जानते हैं कि वह किसी भी सच को सामने लाने में संकोच नही करते। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार गुरदीप खुराना ने कहा कि पंकज बिष्ट की पत्रिका समयांतर में लिखने वाले भी वैसी ही प्रतिबद्धता रखते हैं जैसी पंकज बिष्ट रखते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

साहित्य व संस्कृति कर्मी हम्माद फारुखी ने पंकज बिष्ट और विद्यासागर नौटियाल को एक विचार का कथाकार बताया। उन्होंने पंकज बिष्ट व उनके साहित्य का व्यापक परिचय दिया। बताया कि किस तरह कुमाऊं के अल्मोड़ा, मुम्बई, भारत सरकार के सूचना सेवा विभाग के प्रकाशन विभाग में उपसंपादक व सहायक संपादक, योजना के अंग्रेजी सहायक सम्पादक, आकाशवाणी की समाचार सेवा में सहायक समाचार संपादक व संवाददाता, भारत सरकार के फिल्म्स डिवीजन में संवाद- लेखन करते हुए भी वह साहित्यरत रहे हैं। उनके द्वारा संपादित समयांतर सबसे विचारपरक पत्रिकाओं में है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

पंकज बिष्ट के साहित्य पर विस्तृत टिप्पणी करते हुए डॉ. संजीव नेगी ने कहा कि उनके साहित्य में समय दर्ज होता है और उदारीकरण, बाबरी विध्वंस और वैश्विक परिघटनाओं का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। असगर वजाहत के साथ, बच्चे गवाह नहीं हो सकते, पंद्रह जमा पचीस, टुंड्रा प्रदेश व अन्य कहानियाँ कहानी संग्रहों व लेकिन दरवाजा, उस चिड़िया का नाम, पंखवाली नाव, शताब्दी से शेष उपन्यासों के उद्धरणों के जरिए उन्होंने बताया कि विद्यासागर नौटियाल जहां समष्टि की बात करने वाले पंकज बिष्ट मनुष्य के भीतर की कहानी कहते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

संचालन करते हुए कवि व कथाकार विजय गौड़ ने कहा कि पहला विद्यासागर सम्मान 2021 में कथाकार सुभाष पंत को, दूसरा 2022 में स्व. शेखर जोशी और तीसरा 2023 में डॉ. शोभा राम शर्मा को दिया गया था। इस मौके पर सेव हिमालय मूवमेंट के संरक्षक जगदंबा रतूड़ी, राजीव नयन बहुगुणा, साहित्यकार जितेंद्र भारती, नवीन नैथानी, राजेश सकलानी, दिनेश जोशी, कृष्णा खुराना, समर भंडारी, समीर रतूड़ी, अंतरिक्ष नौटियाल आदि मौजूद रहे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

जानिए विद्यासागर नौटियाल के बारे में
उत्तराखंड के गढ़वाल रियासत के वन अधिकारी नारायण दत्त नौटियाल के घर विद्यासागर नौटियाल का जन्म 29 सितम्बर 1933 को हुआ था। दस वर्ष की आयु में 150 किलामीटर पैदल चलकर कसेंडी बंगाण से टिहरी पहुंचकर सन 1942 में प्रताप इंटर कालेज में कक्षा छ: में प्रवेश लिया। पिता द्वारा घर में अंग्रेजी भाषा का अभ्यास कराने के कारण कालेज में वाद-विवाद प्रतियोगिता में इंटर कक्षा के विद्यार्थियों की तुलना में उन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

आंदोलनों ने भूमिका
प्रजामण्डल आन्दोलन के प्रति झुकाव होने के कारण कम्युनिस्ट नेता नागेन्द्र सकलानी के सम्पर्क में विधासागर नौटियाल आए और उन्हीं के साथ रहकर मार्क्सवाद की शिक्षा ग्रहण की। सन 1946 में टिहरी रियासत में स्वतंत्रता के लिए आन्दोलनों की बाढ़ आ चुकी थी। इन तूफानी दिनों के दादा दौलतराम कुकसाल तथा नागेन्द्र सकलानी की कड़ाकोट आन्दोलन के दौरान गिरफ्तारी हो गयी थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

विद्यासागर नौटियाल ने हेवट पाठशाला के मैदान में स्थित पीपल के ऊँचे वृक्ष पर चढकर जेल के अन्दर भूख हड़ताल पर बैठे नागेन्द्र सकलानी से संकेतों में बात करना सीख लिया। साथ ही सकलानी द्वारा जेल के अन्दर से पत्थर पर बांधकर फेंके गये पत्रों को कम्युनिस्ट मुख्यालय बम्बई पहुंचाना शुरू कर दिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इतने से ही चुप न बैठने वाले विद्यासागर ने देशभक्ति व प्रेम का प्रदर्शन कुछ इस प्रकार किया कि वे प्रताप इण्टर कालेज की ऊंची इमारत की टीन की छतों पर चढ़कर रात में वहाँ तिरंगा फहरा आये। अंग्रेजों के भारत से जाने पर टिहरी की सामन्तशाही ने हैदराबाद, कश्मीर व अनेक दूसरी रियासतों की तरह अपने को भारत से स्वतंत्रता घोषित कर दिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

प्रजामण्डल ने टिहरी रियासत के इस सामान्तशाही निर्णय के विरोध में रियासत के भीतर पूर्ण स्वतंत्रता की लड़ाई छेड़ दी। 18 अगस्त 1947 को प्रजामण्डल के अन्य शीर्ष नेताओं के साथ चौदह वर्षीय विद्यासागर नौटियाल को भी गिरफ्तार कर लिया गया। टिहरी रियासत की सामान्तशाही व्यवस्था के समाप्त होने पर नौटियाल जी ने सन 1952 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया तथा वहाँ कम्युनिस्ट पार्टी का कार्य करना आरम्भ किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

हिंदी साहित्यकारों का अपनी तरफ खींचा ध्यान
बनारस में डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, त्रिलोचन शास्त्री जैसे प्रकाण्ड हिन्दी साहित्य के विद्वानों के सम्पर्क में आने पर विद्या सागर नौटियाल की साहित्य के प्रति रूचि जागृत हुई। सन 1953 में भैंस का कट्या’ कहानी के प्रकाशित होने पर हिन्दी साहित्यकारों का ध्यान इनकी ओर आकृष्ट हुआ। इस तरह बनारस में आठ वर्षों तक अध्ययन, लेखन व कम्युनिस्ट पार्टी का कार्य सुचारू ढंग से चलाते रहे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

विश्वविद्यालय में स्थानीय कांग्रेसी नेताओं जेल की यात्रा तो करनी ही पड़ी साथ की गलत नीतियों के विरोध में नौटियाल जी द्वारा स्वर मुखर करने के कारण ही विश्वविद्यालय से भी आजीवन निष्कासित कर दिया गा। इस घटना से पूर्व नौटियाल जी विश्वविद्यालय छात्र संसद तथा यूनियन में उच्च पदों पर भी आसीन रहे। सन् 1958 में अखिल भारतीय छात्र फेडरेशन के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। सन् 1959 में अपने गृह जनपद टिहरी लौट आये। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

टिहरी में कम्युनिस्ट पार्टी कार्यकर्ता के रूप में शोषण के विरुद्ध संगठनात्मक कार्य आरम्भ किया। शासकीय अधिकारियों के भ्रष्टाचार के विरोध में भी समय-समय पर आवाज बुलन्द करते रहे। भारत-चीन युद्ध के समय कांग्रेस सरकार ने इन्हें बिना मुकदमा चलाये 22 माह तक देश की विभिन्न जेलों में बन्द रखा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

कारागार से मुक्त होने के उपरान्त नौटियाल जी ने लगभग 25 वर्षो तक वकालत का कार्य किया। सन् 1980 में देवप्रयाग सीट से विधान सभा सदस्य निर्वाचित हुए। लेखन के प्रति रूचि रखने के कारण इनका पहला उपन्यास ‘उलझे रिश्ते’ सन् 1959 में प्रकाशित हुआ। उपन्यास ‘भीम अकेला’ तथा ‘सूरज सबका है’, 1994 तथा 1997 में प्रकाशित हुए। इनके द्वारा लिखी गयी ‘सोना’ (नथ) कहानी का नाट्य रूपान्तरण दूरदर्शन पर प्रसारित किया गया। 18 फरवरी 2012 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कृतियाँ
उपन्यास : उलझे रिश्ते, भीम अकेला, सूरज सबका है, उत्तर बयाँ है, झुण्ड से बिछुड़ा, यमुना के बागी बेटे।
कहानी-संग्रह : टिहरी की कहानियाँ, सुच्चि डोर, दस प्रतिनिधि कहानियाँ :- (उमर कैद, खच्चर फगणू नहीं होते, फट जा पंचधार, सुच्ची डोर, भैंस का कट्या, माटी खायँ जनावराँ, घास, सोना, मुलज़िम अज्ञात, सन्निपात।)।
आत्मकथ्य : मोहन गाता जाएगा।
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो।

+ posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page