पढ़िए पिता और माता पर लिखी गई युवा कवयित्री की सुंदर रचनाएं
पापा
मैं जानती हूं तुम भूखे हो
फिर क्यों तुम खुद को भूखे नहीं बताते हो
तपती धूप में पसीने से नहाकर
क्यों तुम खुद को इतना तड़पाते हो
आसानी से गमों को छुपाकर
पापा तुम कैसे मुस्कुराते हो ..?
खुद कांटो पर चलकर हमें गोद में उठाते हो
बच्चों के साथ बच्चा बनकर पापा तुम कितना प्यार जताते हो,
खुद की ख्वाहिशों पर कफन ओढ़ कर
तुम सबकी ख्वाहिशें पूरी कर जाते हो
इतनी जिम्मेदारियां उठाने के बाद भी
पापा तुम कैसे मुस्कुराते हो ..?
हर रोज़ सूरज की तरह सुबह उठकर
चले जाते हो काम पर
सबकी परवरिश की खातिर तुम
खुद रूखी सूखी रोटी चबाते हो
सर पर इतना भार लेकर भी
पापा तुम कैसे मुस्कुराते हो ..?
मां
मुझे ना हो पसंद, मैं वो भी कर जाऊंगी
मां मैं तेरे खातिर खुद से भी लड़ जाऊंगी
इस मतलबी दुनियां में तेरा प्यार मैं भूल ना पाऊंगी
तुमने क्या नहीं किया है मेरे खातिर
इसका कर्ज तो मैं मरते दम तक ना चुका पाऊंगी
चंद ही शब्दों में तारीफ हो जाय तेरी ऐसा हूनुर तो मुझमें आज तक ना आया
मैं क्या लिखूं तुझ पर तूने ही तो मुझे सबसे पहले लिखना सिखाया ।
कवयित्री का परिचय
नाम – गीता मैन्दुली
अध्ययनरत – विश्वविद्यालय गोपेश्वर चमोली
निवासी – विकासखंड घाट, जिला चमोली, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।