पढ़िए शिक्षिका एवं कवयित्री सन्नू नेगी की रचना-विभावनी भोर
विभावनी भोर
गोधूलि सी आज हुई भोर,
आसमान में छाये बादल।
घुमड़ -घुमड़ घनघोर,
बरस रहा है अमृत जल।
अंधकार मिटा कर,
नन्हीं नन्हीं बूंदों के संग।
भोर हुई है आज मनोहर
सावन की फुहारों के संग।
झुलसी धरा ताप से,
हर कोंपल मुरझाई सी।
रिमझिम रिमझिम बूंदों से,
खिल उठी नवल प्रभात सी।
पात-पात और तृण-तृण,
कर स्नान, सजे हैं ऐसे।
मानो शिवालय जाने को,
पुष्प-पत्रों की डलिया हो जैसे।
पीपल भी स्तब्ध खड़ा
अनुभूति अनुपम कर रहा,
अमृत जल, पत्रों से छन,छन
वसुंधरा को समर्पित कर रहा।
पंछी बैठे हैं डाली,
लगे पंखों को सहलाने।
रिमझिम-रिमझिम बूंदों से,
काया अपनी नहलाने।
सरिता कल-कल करती,
देती मधुर संगीत अविरल।
प्रकृति का हर रूप आज,
मस्ती में है मां के आँचल।
अनुपम छटा बिखर रही,
धरती आसमां हो गये एक।
भू पर स्वर्ग उतर आया,
शिखरों ने बादल ओढ़ा।
मन मुदित हर प्राणी का,
आनन्दित है हर जीवन।
मेघों के आने से आज,
विभा हुई सबकी लुभावन।
सावन का सन्देश है ये
दुख बीत सुख की रैना है,
सूखे ने जहाँ मचाई है तबाही
वहीं बूंदों ने नई दुनियाँ रचाई है।
रचना-सन्नू नेगी
सहायक अध्यापक
राजकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय
सिदोली, कर्णप्रयाग, चमोली गढ़वाल
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
हिम मंथन टीम का बहु बहुत आभार
?मेरी रचना को लोकसाक्ष्य में स्थान देने के लिए अनन्त अनन्त आभार व्यक्त करती हूँ,?