कविता में पढ़िए सुर सम्राट एवं गढ़ रत्न नरेंद्र सिंह नेगी की जीवनी, कवि हैं श्यामलाल भारती-गढ़ रत्न नरेंद्र सिंह नेगी
गढ़ रत्न नरेंद्र सिंह नेगी
हे वसुंधरा के महान सपूत,
तेरे गीत हृदय गुंजन करें।
कंठ में मिठास शहद की लिए,
गढ़ भूमि की सदा पीड़ा हरे।।
पहाड़ी जीवन यथार्थ ब्यथा,
चिंतन को प्रस्टफुटित करे।
गहरी टीस हृदय में लिए,
गीतों में अनेकों रस भरे।।
जन्म 12अगस्त 1949 को,
पौड़ी गढ़वाल में हर्ष भरे।
नव अंकुर लेकर जीवन में,
पिता उमराव सिंह के जरे।।
पाया जननी मां समुद्रा का आंचल,
उनके हृदय में असीम खुशी भरे।
प्रकृति भी प्रफुल्लित होकर,
आगमन पर कलियों में रस भरे।।
नाम नरेंद्र पाया तुमने,
रोशन नाम नरेंद्र सिंह करे।
गढ़ भूमि की पीड़ा लिए,
लाखों सवाल मन में करे।।
पिता फौजी थे परिवार बड़ा,
चिंता उनकी मन में धरे।
बस सहारा बन जाऊं पिता का,
मन को खुद के, सबल करे।।
प्रकाश पुंज बिखेरने को आतुर,
पिता के नयनों का दर्द सहे।
रोशनी पुंज असंख्य भर डाला,
पिता के नयनों का इलाज करे।।
इसी पीड़ा का दर्द समझकर,
गीत पहला 1974 में दुःख भरे।
मेरा सदानी यनि दिन रैना,
लिखकर पीड़ा सबके हृदय की हरे।।
खुदेड गीत घुघुती घुराण लगी,
सुने मायके की यादें भरें।
पहाड़ों पर घसेरी की विपदा,
सबके हृदय में उजागर करे।।
बुढ़ापे का अंधकार उनकी विपदा,
गीतों में बोल पीड़ा बयां करें।
जख़ तलक व्हे साकू नीभे ल्या,
पीड़ा सबके हृदय में असीम भरे।।
होली बसंत दीपावली के मधुर गीत,
सबके हृदय में सुख दुःख खुशी भरे।
छोटा हो या बड़ा समाज में,
गीतों में सबकी बातें गुंजन करे।
सरकार की नीतियों के कारण,
2005 में अपनी नौकरी का त्याग करे।
नौछमी नारैण गीत गाकर,
सरकार पर गुंजन प्रहार करे।
तभी तो तिवारी सरकार पर,
वो रण भेदी हुंकार भरे।।
इस संदेश से कुर्सी गिर गई,
तिवारी सीधे आसमां से धरा में गिरे।
आमजन मानस समझा बात को,
समाज को वो जागृत करे।
समाज गढ़ भूमि की पीड़ा से,
खुद के हृदय पर घात करे।
लोगों की दुआएं मिली इतनी,
हृदय के धीरे धीरे घाव भरे।।
28 जून 2017 की काली दुपहरी,
सीने में असहनीय दर्द भरे।
फिर भी धैर्य अदम्य साहस,
काल भी उनसे बहुत डरे।।
लोगों की दुआएं मिली इतनी,
मौत की कोठरी भी पार करे।
नहीं छोड़ा तब भी गीत गुंजन,
गीतों में फिर से रसधार भरे।।
पत्नी उषा का गजब लेखन,
तुमको हर पल हर्षित करे।
ऋतु कविलास आंखो के तारे,
हर पल मन में प्यार भरे।।
नहीं गढ़रत्न,गढ़ गौरव बनते यूं ही,
कर्म भूमि पर हृदय न्यौछावर करें
शत शत नमन वंदन मेरा आपको,
ऐसा सपूत धरा में बार बार जरे।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत बढ़िया रचना