पढ़िए दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली कविता-प्यारू उत्तराखंड
प्यारू उत्तराखंड “
तेरा जिल्लौं से बड़ि छायू , प्यारू उत्तराखंड.
बीस साल ह्वीं राज्य बड़्यां , प्यारू उत्तराखंड..
करि आंदोलन मिलि सबुन , जै-कारा तेरु काय.
हत्ता-पल्ला कुछ ऐ नि मगर , प्यारू उत्तराखंड..
मिलिके सबन संघर्ष करि , कयून बीरगती पाय.
पैलि से आज बुरि दसम , प्यारू उत्तराखंड..
बीस साल का बीस पर्वाण , अपड़ा ज्यूकी काय.
हमकु जनि- तनि फलदु रै , प्यारू उत्तराखंड..
नौ नवम्बर आला-जाला, बीर सदनि याद राला.
शासन वल़ौं न बुजीं कंदूण , प्यारू उत्तराखंड..
हम दौड़ म पिछड़ी गिवां, कागज़ी दौड़ लगाइ.
हरिद्वार-देरादूण दौड़दु रायी , प्यारू उत्तराखंड..
कोरट-कचरी खूब लगीं, प्लोट-स्लोट खूब बिकीं.
रुप्या-पैंसौं की बरखा हूंणी , प्यारू उत्तराखंड..
शैरौं का सबि गूणि-बांदर, गौं-गौं ऐकी बसि गींन.
रात – दिना घंट्यांणु हुयूं च , प्यारू उत्तराखंड..
भाषा बात खूब हूंणी , बुद्धिजीब्यूं म होण लगीं.
वखा भाषा ह्वे देसि-न-पाड़ी , प्यारू उत्तराखंड..
‘दीन’ हमत प्रदेश ऐ गिवां, वख डुट्यल़ौंकू राज.
यख बैठी हम बोलदा रवां , प्यारू उत्तराखंड..
कवि का परिचय
नाम .. दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव.. माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य
सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।