शिक्षिका एवं कवयित्री डॉ. पुष्पा खण्डूरी की कविता-सबसे बड़ा योग
परस्पर सहयोग ही तो
सदा सबसे बड़ा योग है।
एक रोटी जो हाथों में आई
सुनो, कहती है हमसे बहुत कुछ,
कथा इक लम्बी सी कर्म-योग की
सर्दी में अपने ढाँपने थर- थर वदन को काँपते,
जो चीर धारन किया हमने!
सुनो,कहती है हमसे बहुत ,
कथा लम्बी सी उस चरवाहे की
जिसने अपनी भेड़ ही कम्बल में समेट कर
सौंप दी बाजार को,
और तरसता रहा सर्दी में खुद,
इक फटी सी लीर को ॥
पैकेट में स्वादों को बन्द कर,
पहुँचा दिया डाइनिंग टेबुलों पर हमारी,
सुनो, कहती है हमसे बहुत कुछ
कथा उस विचारे शख्स ,
भीग कर बारिशों में जिसने
स्वयं भंडारे में जाकर
मिटाई भूख अपने पेट की ॥
याद कर उन सबको गर तू,
मान इक एहसान कर,
नित अपनी आजीविका से,
तू किसी जरूरतमंद को तो तृप्त कर।
चुका पाऐगा इस तरह तू भी
किसी का ऋण कभी !
उऋण होने के लिए नित
परस्पर सहयोग का
जीवन में प्रतिदिन योग कर॥
कवयित्री का परिचय
डॉ. पुष्पा खण्डूरी
एसोसिएट प्रो. एवं हिंदी विभागाध्यक्ष
डीएवी (पीजी ) कालेज देहरादून, उत्तराखंड। (लेखिका देहरादून में डीएवी छात्रसंघ के पूर्व लोकप्रिय अध्यक्ष एवं भाजपा नेता विवेकानंद खंण्डूरी की धर्म पत्नी हैं। कविता और साहित्य लेखन उनकी रुचि है)
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।