युवा कवयित्री अंजली चंद की कविता- ना जानें कैसे
जिन्दगी की राह चाह से अलग हो गई
हर नाकाम चाह का डर खत्म हो गया
मचलती इच्छाएं ख़त्म हो गई
मनपसंद का प्रभाव खत्म हो गया
मुकाम से लगाव खत्म हो गया
ना जानें कैसे।।
हार की आदत में अब खुद से लड़ाई खत्म हो गई
दिल चीर जाए तो ज़ख्म खरोंच की तड़प खत्म हो गई
कोई अतीत का किस्सा दोहरा जाए, तो वो याद ही धुंधली हो गई
तस्वीर पुरानी झलक जाए तो वो तस्वीर ही धुंधली हो गई
ना जानें कैसे।। (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
कब और कैसे वो ताल्लुक खत्म हो गए
किसी खास के दूर हो जाने से प्रभाव खत्म हो गए
किसी को आजमाने वाले वो एहसास ख़त्म हो गए
किसी के लिए न्यौछावर होने वाले वो जज़्बात ख़त्म हो गए
ना जानें कैसे।।
लगती ठोकरों से गहरी चोट का सफ़र ख़त्म हो गया
दिल के छलनी होने से पत्थर होने का सफर खत्म हो गया
अचानक बहते आंसू कोई पोछे ये सफर ख़त्म हो गया
घुटन को बयां कर देने का सफ़र ख़त्म हो गया
ना जानें कैसे।। (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
किसी की बेवफाई से फर्क पड़ना ख़त्म हो गया
किसी की दुःख इंतहा से दर्द होना खत्म हो गया
अब ख़ुद की जिंदगानी से मोहब्बत ख़त्म हो गई
अपनी एक दिन की मौत की उस पीढ़ा से अब डर खत्म हो गया
ना जानें कैसे।।
कवयित्री का परिचय
नाम – अंजली चंद
खटीमा, उधमसिंह नगर, उत्तराखंड। पढ़ाई पूरी करने के बाद सरकारी नौकरी की तैयारी कर रही हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।