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April 17, 2025

कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल- पंदेरा-नवळा

कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल- पंदेरा-नवळा।

पंदेरा-नवळा

पंदेरा बड़िगीं गदेरा, नवळा सूखि गींन.
नलौं कु भरोसु कनम कन, टूटि गींन..

गौं-गौं घर-घरौं, पांणी रूणु ह्वेगे आज,
पुरणि गागर- कसेरा, सबि फूटि गींन..

कबि ऐ बि जा यूं नलौं, घळतेड़्या पांणि,
पींणा कु सोचड़ पोड़द, भरोसु टूटि गींन..

जौं रोल्युं गोर-भैंसौं, पिल़ांदा छा पांणि,
वे पांणि भोऱ, पंदेरा- नवळा छुटि गींन..

हिक्मत सामर्थ टुटि, ये रूखा पांणि पे,
कार-काज बगैर, उनि-कमर झुकि गींन..

म्वार अग्नै लगै छै, नरंगि- माल्टा डाळी,
बरसौं पिछनै द्याख, निचट- सुखि गींन..

‘दीन’ घर द्यखण कि-बौंण, सोच पड़िगीं,
सोचि-सोचि ज्यू दुख, ऑखि भिजि गींन..

कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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