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April 16, 2025

युवा कवि नेमीचंद मावरी की कविता-सर्दी डर रही है

सर्दी डर रही है

हर गली चौराहे पर,
चाय की थडियों पर,
विद्यालयों के प्रांगण में,
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों में,
बुजुर्गों द्वारा जलाये अलावों के पास,
यारों की महफ़िलों में,
बसों में, ट्रेनों में
अस्पतालों में,
यहाँ तक कि खेलते कूदते
बच्चों के बीच भी
आज सर्दी आने से डर रही है।
बहुत ही भयभीत सी हो गई है सर्दी,
क्योंकि शायद देश का माहौल,
वर्तमान का हाल इतना गरमा चुका है,
कि सर्दी का वजूद ही वाष्पित हो
इस अंतरिक्ष में उड़ने लगा है ।
अखबारों में जहाँ अब तक
हर साल सीना तान
सर्दी अपना बोलबाला शुरू कर देती थी,
वहीं इस बार शायद पत्रकार महोदय
सर्दी के घर तक भी ना पहुँच पाए।
समाचार पढ़ने वाले दीदी जी,
शायद सर्दी को अपनी कलम से
अंकित करना भूल गए,
या फिर शायद सर्दी ही रास्ते में
उनके घर पहुँचते हुए पिट गई,
एन आर सी समर्थकों से,
या फिर विरोधियों से।
ना कोई प्रचार है,
ना कोई व्यवस्था
इस सर्दी देवी को बिठाने की,
बस लगे हुए हैं लोग,
अपनी अपनी रोटियाँ सेकने में ।
कुछ तो लिहाज हो इस एक साल में
आने वाली मेहमान का।
समय ने सर्दी को बस आंदोलनों के बीच
नारे लगाने वाली एक आम नागरिक की
श्रेणी में खड़ा कर दिया।
अब सर्दी सोच रही है,
जाऊँ तो किसके साथ,
क्योंकि दोनो तरफ से प्रताड़ित तो
स्वयं को होना है।
हंसती खेलती सर्दी का गला घुँट चुका है,
सर्दी पूरी तरह से लाचार हो चुकी है,
एकदम बेकार हो चुकी है,
पूरी मान मर्यादा लुट गई
और अपनी प्रतिष्ठा खो चुकी है।
ना क्रिसमस में “गुलाबी सर्दी” के
उपनाम से सुशोभित हो पाएगी,
ना नये साल में अखबारों की
हेडलाइन बनने का
तमगा ले पाएगी,
खुद नेगेटिव पॉजिटिव भले ही बढे ना बढ़े
लेकिन रेस्पोंस पूरा नेगेटिव जरूर मिल रहा है
बस अब तो हर पल धड़कने बढ़ रही है,
ये प्यारी सर्दी सच में डर रही है।

कवि का परिचय

नेमीचंद मावरी “निमय”
हिंदी साहित्य समिति सदस्य,
बूंदी, राजस्थान
नेमीचंद मावरी “निमय” युवा कवि, लेखक व रसायनज्ञ हैं। उन्होंने “काव्य के फूल-2013”, “अनुरागिनी-एक प्रेमकाव्य-2020” को लेखनबद्ध किया है। स्वप्नमंजरी- 2020 साझा काव्य संग्रह का कुशल संपादन भी किया है। लेखक ने बूंदी व जयपुर में रहकर निरंतर साहित्य में योगदान दिया है। पत्रिका स्तंभ, लेख, हाइकु, ग़ज़ल, मुक्त छंद, छंद बद्ध, मुक्तक, शायरी , उपन्यास व कहानी विधा में अपनी लेखनी का परिचय दिया है।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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