युवा कवयित्री किरन पुरोहित की कविता- पहचानो, अब तुम हो कौन
पहचानो, अब तुम हो कौन
हे ! मिट्टी की देह बता, आखिर क्या तेरा शुभ नाम ।
किस हेतु तू जीती जीवन, क्या तेरा दुनिया में काम ? ।।
क्या सहने को धूप-छांव ही, तू इस दुनिया में आई ।
क्या तेरे हिस्से में आते, बस विलाप व शहनाई ।।
क्या तू है केवल शरीर, जो खाता -पीता -सोता है ।
कुछ पाने को सदा तडपता व खोने पर रोता है ।।
भूख-प्यास सुख-दुख आराम व कष्ट जन्म से साथी हैं ।
वह शरीर है क्या तू जिसको, इक दिन मौत सताती है ।।
क्या तू है मात्र घड़ा मिट्टी का, जिसे कोई भी तोड़ सके ।
क्या तू है वो गुजरा पल जो, बीते तो ना लौट सके ।।
या हाथ – पांव और हाड – मास के, पीछे कोई और है तू ।
जो है अव्यक्त, अक्षर, अविनाशी, अमर तत्व का छोर है तू ।।
जो आया है दिव्यलोक से दिव्य कार्य करने हेतु ।
जो आया है दिव्य रूप में परहित तप करने हेतु ।।
अपने ही उस दिव्य रूप को फिर से पाने तू आया ।
रह जमीन पर अपने कार्य से नभ पर छाने तू आया ।।
है तेरा कोई नाम नहीं, है स्वयं में कोई काम नहीं ।
शांति को पाने दौड़ रहा पर, दुनिया में आराम नहीं ।।
सुनकर यह सच मौन हुए क्यों, खुद से पूछ और यह बोल।
इस धरती पर विचर रहे हो, पहचानो अब तुम हो कौन ?
कवयित्री का परिचय
नाम – किरन पुरोहित “हिमपुत्री”
पिता -दीपेंद्र पुरोहित
माता -दीपा पुरोहित
जन्म – 21 अप्रैल 2003
अध्ययनरत – हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय श्रीनगर मे बीए प्रथम वर्ष की छात्रा।
निवास-कर्णप्रयाग चमोली उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।