युवा कवयित्री अंजली चंद की कविता- आंखों से बहा आंसु नहीं होता महज़ पानी
आंखों से बहा आंसु नहीं होता महज़ पानी
होता है असहनीय पीढ़ा का आंखों से छलक जाना
होता है भावनाओं का ना थम पाना
होता है सब्र का टूट जाना
होता है किसी अज़ीज़ का साथ छूट जाना,
होठों का सिल जाना नहीं होती महज़ ख़ामोशी
होता है अंदर से खोखला हो जाना
होती है हद तक शोर करके हार जाना
होती है कोशिशें करके थक जाना
होती है जुबां का समझ ना पाना
होता है मन का थक जाना, (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
सफलता को ना पा पाना नहीं होती महज़ नाकामी
होता है असफलता की लड़ाई खुद से लड़ना
होता है सपनों का बिखर जाना
होता है मेहनत का फल ना पाना
होता है एक लम्बा सफ़र हार जाना
होता है समाज में अपना स्थान ना पाना,
अकेला रहना नहीं होता महज़ एकांत
होता है अंतर्मन का साझेदार न मिल पाना
होता है अपनों का साथ ना मिल पाना
होता है कोई खाश से ठुकरा जाना
होता है अकेलेपन से दोस्ती हो जाना (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
पहले जैसा ना रहना नहीं होता महज़ बदलना
होता है मनपसंद की आदत को अपना बना लेना
होता है ख़ुद को माहौल में ढाल लेना
होता है किसी की संगत का असर हो जाना
होता है किसी की ठोकर से रंगत का बदल जाना।
कवयित्री का परिचय
नाम – अंजली चंद
खटीमा, उधमसिंह नगर, उत्तराखंड। पढ़ाई पूरी करने के बाद सरकारी नौकरी की तैयारी कर रही हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।