युवा कवयित्री गीता मैंदुली की कविता- मैं आज भी जीवित हूं
मैं आज भी जीवित हूं तो प्रभु तेरा ही रचा ये खेल है
वरना कहां मैंने भरी आज तक इतनी जेब है
तेरे भरोसे से पल रहे थे बेफिक्रे से अंदाज में
हमको कहां खबर थी कि प्रकृति को मानव से इतना द्वेष है।।1।।
हर मुश्किल घड़ी में तुम ही मेरे सबसे करीब हो
मैं बेशक हूं एक गरीब प्रभु तुम ही मेरे कुबेर हो
इतना सबक तो मिला ही है इस महामारी में
खुदा करे अब तो इंसान को इंसान से बैर ना हो।।2।।
बे-वजह पेड़ों का अंधाधुन कटान किया था हमने
ऑक्सीजन की कीमत से आज रू-ब-रू हो गए
पैसों से ही सब कुछ खरीद लेंगे ऐसा कहने वाले भी
कई आज पैसे यही छोड़ खुद पैसों से दूर हो गए।।3।।
सिर्फ नोटों की ही नहीं जिंदगी की कीमत भी समझिए
तू हिंदू मैं मुसलमान अब तो ये भेद तो छोड़ दीजिए
अगर है तुम्हें आज भी जाति से इतनी परेशानियां
तो किसी का रक्त लेने से पहले भी तो उसकी जाति पूछिए।।4।।
गांव छोड़ हमें शहरों में ही बसना है ये कहना गलत था
आज हम सब इस बात को भली भांति जानते हैं
वर्तमान में शहरों की हालत देखकर अब
गांव कभी शहर ना हों सब यही दुआ मांगते हैं।।5।।
आधुनिक होना अच्छा है पर ये सब सीमित हो
अपनी संस्कृति अपनी परंपरा के प्रति भी सचेत हों
गांव में गंवार लोग नहीं समझदार लोग रहते हैं
इस बात से अब तो सभी लोग वाकिफ हों।।6।।
कवयित्री का परिचय
नाम – गीता मैन्दुली
माता का नाम श्रीमती यशोदा देवी
पिता का नाम श्री दिनेश चंद्र मैन्दुली
अध्ययनरत – विश्वविद्यालय गोपेश्वर चमोली
निवासी – विकासखंड घाट, जिला चमोली, उत्तराखंड।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।