युवा कवि ब्राह्मण आशीष उपाध्याय की कविता-हे आदि अनादि अखण्ड अनन्ता
हे आदि अनादि अखण्ड अनन्ता।
तोहे पुकारन लगे हैं नर नारी अरु सब संता।1।
कौन सो पाप कियो है प्रभू जी।
जो इतना दुख सब पाय रहे हैं।2।
दीनन की आय सहाय करो भगवन ।
कभो इत, कभो उत धाय रहे हैं।3।
हे शंकर भोले नाथ सुनो।
अधीर होत जाय रहे हैं।3।
देर बहुत हुई जाय रही है ।
मोसो न रूठो तुम भगवंता।5।
हे आदि अनादि अखण्ड अनन्ता।
विद्रोही आन पड़ा है चरण तिहारो ।
चलो तुम मोरे साथ तुरंता ।6।
मेरे सर पर अपने हाथ धरो ।
नन्दीगण को ले साथ बढ़ो ।7।
हे कैलाशी सुनो तोहरे बिन।
सबको घेरे जाय व्याकुलता ।8।
देवन के तुम देव महाप्रभु ।
काम लोभ मोह अरु विकार के हंता।9।
दुष्ट संघारण को शोक निवारण को ।
चाहे बनो वीरभद्र तुम चाहे बनो तुम हनुमन्ता।10।
हे आदि अनादि अखण्ड अनन्ता ।
कवि का परिचय
नाम-ब्राह्मण आशीष उपाध्याय (विद्रोही)
पता-प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश
पेशे से छात्र और व्यवसायी युवा हिन्दी लेखक ब्राह्मण आशीष उपाध्याय #vद्रोही उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद के एक छोटे से गाँव टांडा से ताल्लुक़ रखते हैं। उन्होंने पॉलिटेक्निक (नैनी प्रयागराज) और बीटेक ( बाबू बनारसी दास विश्वविद्यालय से मेकैनिकल ) तक की शिक्षा प्राप्त की है। वह लखनऊ विश्वविद्यालय से विधि के छात्र हैं। आशीष को कॉलेज के दिनों से ही लिखने में रुचि है। मोबाइल नंबर-75258 88880
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
सुन्दर रचना
अद्भुद रचना भ्राता श्री