युवा कवि ब्राह्मण आशीष उपाध्याय की कविता- मैं भी लिखने लगा अगर प्रेम, स्नेह, श्रृंगार को
मैं भी लिखने लगा अगर प्रेम, स्नेह, श्रृंगार को।
तुम बोलो फिर कौन लिखेगा, वीरों के संसार को।1।
किसी सुन्दरी के अधरों की मदमाती मुस्कान लिखूँ।
या वीर प्रसूता माँओं का, सर्वस्व देश को दान लिखूँ।2।
लिखूँ?बालों के गजरे और होंठ की लाली को।
या लिखूँ?देश पर जान लुटाती, जवानी मतवाली को।3।
लिखूँ? सुंदरता के नशे में चूर घमण्ड और अहंकार को।
या लिखूँ हुए मृत फिर भी हाथों में थामे हथियार को।4।
मैं भी लिखने लगा अगर प्रेम, स्नेह श्रृंगार को।
तुम बोलो फिर कौन लिखेगा, वीरों के संसार को।।
लिखूँ? किसी सुन्दरी के सोलह श्रृंगार को।
या लिखूँ देश भक्ति में धधक रही हृदयँ की ज्वार को।5।
लिखूँ? माथे की बिंदिया और कानों की बाली को।
या लिखूँ? शहादत का संदेशा लाये उस तार को।6।
लिखूँ किसी के जुल्फों को आकाश का बादल।
या लिखूँ देश की रक्षा में मरने वाले वीरों को पागल।7।
मैं भी लिखने लगा अगर लाऊँ तोड़ चाँद सितारों को।
तुम बोलो फिर कौन लिखेगा बूढों के आँख के तारों को।8।
मैं भी लिखने लगा अगर प्रेम,स्नेह और श्रृंगार को।
तुम बोलो फिर कौन लिखेगा,वीरों के संसार को।।
कवि का परिचय
नाम-ब्राह्मण आशीष उपाध्याय (विद्रोही)
पता-प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश
परिचय-पेशे से छात्र और व्यवसायी युवा हिन्दी लेखक ब्राह्मण आशीष उपाध्याय #vद्रोही उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद के एक छोटे से गाँव टांडा से ताल्लुक़ रखते हैं। उन्होंने पॉलिटेक्निक (नैनी प्रयागराज) और बीटेक ( बाबू बनारसी दास विश्वविद्यालय से मेकैनिकल ) तक की शिक्षा प्राप्त की है। वह लखनऊ विश्वविद्यालय से विधि के छात्र हैं। आशीष को कॉलेज के दिनों से ही लिखने में रूची है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।