बालिका दिवस पर शिक्षक विजय प्रकाश रतूड़ी की कविता-नेक ऐसी बेटिया
“नेक ऐसी बेटिया”
मिटाने पर भी झिलमिलाए,
रेख ऐसी बेटियां।
डांटने पर भी मुस्कराए,
नेक ऐसी बेटियां।
फूल की सुगंध है,
प्रेम की बयार वो।
है जगत की आस वो,
अमृत की फुहार वो।
प्रेम की पुकार है,
सत्कार अपनी बेटियां।
मिटाने पर भी झिलमिलाए,
रेख ऐसी बेटियां।
खेल है वो कौतूहल,
दया सेवाभाव वो।
रसोई की सुगंध,
प्रबंध का प्रकार वो।
जब लोग दूर जाएं,
पास आयें बेटियां।
मिटाने पर भी झिलमिलाए,
रेख ऐसी बेटियां।
गीत वो संगीत वो,
मंद वायु की छुवन।
रूठना मनाना है,
भाग्य की मधुर किरण।
उष्ण मरुभूमि में,
फुहार मेरी बेटियां।
मिटाने पर झिलमिलाए,
रेख ऐसी बेटियां।
बहार है त्योहार है,
श्रृंगार सदाचार वो।
आरती की धुन है वो,
सृष्टि का आधार वो।
नभ,जल,थल सब जगह,
तैयार आज बेटियां।
मिटाने पर झिलमिलाए,
रेख ऐसी बेटियां।
कवि का परिचय
नाम-विजय प्रकाश रतूड़ी
प्रधानाध्यापक राजकीय प्राथमिक विद्यालय ओडाधार विकासखंड भिलंगना, जनपद टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बेटियों पर सुंदर रचना.