कवि सोमवारी लाल सकलानी की कविता-कोरोना जन जागरूकता अभियान

महाकाल कोरोना आया, सर पर मंडराया मौत का साया !
सवा तीन लाख आज संक्रमित, समय नहीं होने का भ्रमित।
इलाज से ज्यादा बचाव जरूरी, रखो बना कर दो गज दूरी,
यदि हो जाए रोग कोरोना, भय के मारे बे- मौत नहीं मरना !
सर्दी बुखार जुकाम तन पीड़ा, जरूरी नहीं यह है कोरोना !
डॉक्टर से परामर्श करना, अपना नीम हकीम स्वयं न बनना।
अफवाहों पर ध्यान ना धरना, टीकाकरण जरूरी है करना।
यदि सौ पर तन चढ़ गया पारा,दवा बुखार अरु पीना काढ़ा।
भयभीत हो मत घबराना, पास डॉक्टर के जरूरी है जाना।
हाथ पांव धुल भीतर आना, बाहर मास्क लगाकर है जाना।
समारोह में फिलहाल ना जाना, बे- वजह रोग मत फैलाना।
देश सरकार कोर्ट सब चिंतित, जीवन रक्षा ध्यान दें किंचित।
महामारी आतंक है फैला, नेता गण संग चले न जन रेला !
डॉक्टर पुलिस प्रशासन सहयोगी, बुरा वक्त है बने न लोभी।
घबराओ मत ईलाज कराओ, दुष्ट कोरोना मार भगाओ ।
जन जागरूकता अलख जगाओ, बे वजह बाहर न जाओ।
कवि का परिचय
नाम-सोमवारी लाल सकलानी, निशांत।
सुमन कॉलोनी चंबा टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।






बहुत सुन्दर प्रेरणा दायी रचना?