युवा कवि सूरज रावत की कविता- सोचो क्या सच में आजाद हैं हम

बेशक कहने को आजाद हैं हम ,
सोचो क्या सच में आजाद हैं हम,
आधुनिकता ने बाँध लिया सबको अपने जंजाल में,
छोटा, बड़ा, जवान, बूढा, आज हर कोई उलझा पड़ा है,
आंशिक परिधानों के माया जाल में,
खुद को आजाद कहते हो,
खुद को तुम जरा सजग कर लो,
दुनिया की सारी भेड़ चाल में है हर कोई,
जागरूक बनो,
खुद को तुम जरा भीड़ से अलग कर लो, (कविता जारी अगले पैरे में देखिए)
आंशिक सुख के लिए,
कई परमापराएं पीछे छूट रही रही हैं,
आजादी की बात करते हैं,
पर ये आधुनिकता की गुलामी हमें अंदर से लूट रही है,
सोचो क्या सच में आजाद हैं हम,
कहीं वही छोटी सोच,
तो कहीं मानसिक गुलामी नजर आती है,
बाहर से बेशक इस फूहड़ जिंदगी से खुश हैं हम,
पर झाँक कर देखो खुद के अंदर कुछ तो खामी नजर आती है, (कविता जारी अगले पैरे में देखिए)
आज भी बच्चा माँ पिता के अनुसार विषयों को चुनता है,
जिंदगी उसकी अपनी है,
पर किसी और के सपनों को खुद के लिए बुनता है,
लड़की क्या पहनेगी आज भी ये समाज से तय होता है,
आजाद देश के नागरिक हैं,
पर अकेले घर से बाहर निकलने में भी भय होता है,
सोचो क्या सच में आजाद हैं हम
खुद के निर्णय खुद लेने की आजादी आज भी नजर आती नहीं,
बेशक़ कागज़ों में आजाद हो गये हम,
पर स्वतंत्र लोकतंत्र में खुलकर बात रखने की आजादी
आज भी नजर आती नहीं,
कहीं राजनीति का खेल हो जाता है,
और कहीं आरक्षण का रूप नजर आता है,
बेशक़ आजादी के गुण गान गाते हैं हम,
पर आज भी कई चीजों में गुलाम नजर आते हैं हम,
बेशक कहने को आजाद हैं हम,
सोचो क्या सच में आजाद हैं हम।
कवि का परिचय
सूरज रावत, मूल निवासी लोहाघाट, चंपावत, उत्तराखंड। वर्तमान में देहरादून में निजी कंपनी में कार्यरत।
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Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।